परिचय (introduction):-
दोस्तों, जब भी हम कहीं बाहर सफर करते हैं तो हमे पॉवर सप्लाई को बड़े बड़े टॉवर तो दिख ही जाते है। इस टॉवर में लगे इन्सुलेटर को हम लोग देखे ही होंगे। तो आज हम इस इन्सुलेटर के बारे में बात करेंगे कि इन्सुलेटर क्या होता है (what is insulator in hindi), इन्सुलेटर कितने प्रकार के होते हैं (Types of insulator in hindi). इसका वोल्टेज परास क्या होता है। ये सब आपको जानने को मिलेगा तो बने रहिए हमारे साथ।
इंसुलेटर क्या होता है (what is insulator in Hindi):-
Insulator का प्रयोग ओवरहेड लाइन में कंडक्टर को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। insulator, conductor और सपोर्टिंग स्ट्रक्चर के बीच इंसुलेशन प्रदान करता है।
Insulation के गुण (properties of insulator in hindi):-
जब हम ओवरहेड लाइन में इंसुलेटर का इस्तेमाल करते हैं तो हमें इंसुलेटर का गुड या क्वालिटी का भी ध्यान रखना होता है।अतः एक अच्छे इंसुलेटर में निम्न प्रकार के गुण होने चाहिए।एक इंसुलेटर का मैकेनिकल स्ट्रैंथ (mechanical strength) उच्च होना चाहिए।
- एक इंसुलेटर का मैकेनिकल स्ट्रैंथ (mechanical strength) उच्च होना चाहिए।
- एक इंसुलेटर पर वातावरण का प्रभाव नहीं पढ़ना चाहिए।
- इंसुलेटर को वजन में हल्का होना चाहिए।
- इंसुलेटर के मटेरियल आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।
- इंसुलेटर का मूल्य (low cost) कम होना चाहिए।
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इंसुलेटर के प्रकार (types of insulator in Hindi):-
दोस्तों ओवरहेड लाइन में उपयोग होने वाली इंसुलेटर कई प्रकार की होती हैं जिनका अलग-अलग स्थिति में अलग-अलग प्रकार की प्रयोग किया जाता है जो कि निम्न है।
मटेरियल के आधार पर इंसुलेटर के प्रकार (types of insulator on the basis of material use):-
Matrial के आधार पर इन्सुलेटर निम्न प्रकार के होते हैं।
पोर्सलिन इन्सुलेटर(porcelin insulator):-
Porcelin नामक पदार्थ से बने इंसुलेटर को पोर्सलिन इंसुलेटर कहते हैं। पदार्थ से बने इंसुलेटर सभी प्रकार के वोल्टेज जैसे लो वोल्टेज तथा हाई वोल्टेज दोनों प्रकार के वोल्टेज में प्रयोग किया जाता है।

इस पदार्थ की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रैंथ 60 kv/cm होता है। इस पदार्थ का कलर वाइट होता है लेकिन इंसुलेटर बनाने के बाद इस पर एक ग्लेजिंग किया जाता है ग्लेजिंग करने से हमारे इंसुलेटर का सरफेस स्मूथ हो जाता है जिसके चलते वातावरण का प्रभाव इस पर कम हो जाता है।
ग्लास (glass):-
कई बार जब हम ट्रेन में सफर करते हैं तो हमें बड़े-बड़े ट्रांसमिशन लाइन के टावर देखते हैं जिस पर कहीं-कहीं हमें इंसुलेटर शीशे की तरह चमकने वाली इंसुलेटर लगी होती है इस प्रकार के इंसुलेटर glass के बने होते हैं इस प्रकार की इंसुलेटर को सभी सभी प्रकार के वोल्टेज लो वोल्टेज और हाई वोल्टेज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसकी डाइलेक्ट्रिक स्ट्रैंथ porcelin इंसुलेटर के dielectric strength से हाई होती है इसकी डाइलेक्ट्रिक स्ट्रैंथ 140 kv/cm पर सेंटीमीटर होता है। जो कि पोर्सलिन इंसुलेटर से दोगुना होती है इसकी कलर ट्रांसपेरेंट होती है।
जियोपोल पॉलिमर Geopol (polymer):-
इस प्रकार के इन्सुलेटर फाइबर ग्लास और एपॉक्सी पॉलिमर (epoxy polymer) का बना होता है। इस पदार्थ से बने इन्सुलेटर का प्रयोग अधिकतर वहा पर किया जाता है जहां प्रदूषित क्षेत्र हो।

यह प्रदूषित एरिया के लिए उचित मान जाता है। इसमें एक और खास बात यह है कि यह पोर्सलिन इन्सुलेटर की तुलना में 70 % तक हल्का होता है। इसका कलर grey होता है।
उपयोगिता के आधार पर इन्सुलेटर के प्रकार (types of insulator on the basis of application):-
- पिन इन्सुलेटर (pin insulator)
- शैकल इन्सुलेटर (shackle insulator)
- डिस्क इन्सुलेटर (disk insulator)
- स्ट्रेन इंसुलेटर (strain insulator)
- सस्पेंशन इन्सुलेटर (suspension insulator)
- पोस्ट इन्सुलेटर (post insulator)
- स्टे इन्सुलेटर (stay insulator)
- रील इन्सुलेटर (reel insulator)
पिन इन्सुलेटर (pin insulator in hindi):-
पिन इंसुलेटर का चित्र आपको दिखाया गया है। यह पिन इंसुलेटर एक 11kv 33kv की ओवरहेड लाइन में प्रयोग किया जाता है। जिसमें से सबसे ज्यादा है 11 केवी की लाइन में इस्तेमाल किया जाता है।

स्पिन इंसुलेटर का इस्तेमाल वहां पर किया जाता है जहां पर लाइन एकदम सीधी गई हो। क्योंकि यह लाइन एंगल टेंशन को सह नहीं पाता है। क्योंकि ओवरहेड वायर इस इंसुलेटर के टॉप पॉइंट से होकर जाती है। जिससे थोड़ा भी एंगल आने से कंडक्टर दिया तो इंसुलेटर से नीचे गिर जाएगी या तो इंसुलेटर डैमेज हो जाएगा।
पिन इंसुलेटर को 66kv तक के लाइन में भी उपयोग किया जा सकता है लेकिन इसकी लागत ज्यादा आएगी।जहां पर ओवरहेड लाइन को मुड़ाने की जरूरत होती है वहां पर पोल पर डिस्क टाइप इंसुलेटर का प्रयोग किया जाता है।
33 KV का पिन इंसुलेटर 11 केवी के पिन इंसुलेटर से अपेक्षाकृत बड़ा साइज का होता है। और उसके प्रसार भी अपेक्षाकृत बड़े साइज के होते हैं। पिन इंसुलेटर को क्रॉस आर्म (cross arm) के टॉप पर लगाया जाता है।
शैकल इन्सुलेटर(shackle insulator):-
इस प्रकार के इंसुलेटर सेकेंडरी डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में 230 / 400 bolt के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार के इंसुलेटर को किसी भी एंगल पर प्रयोग किया जा सकता है।

डिस्क इन्सुलेटर(disk insulator):-
यह एक डिस्क के आकार का इंसुलेटर होता है। सामान्यता इसमें 111 की भी का एक डिस्क बनाया जाता है। Porcelain का बना डिस्क एक 11 केवी तथा 15 केवी के डिस्क बनाए जाते हैं। अगर glass मटेरियल का डिस्क है तो वह एक 11kv तथा 18 केवी का भी डिस्क आता है।

डिस्क इंसुलेटर सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला इंसुलेटर है। क्योंकि यह हाई वोल्टेज जैसे 120kv आदि के लिए यदि उपयोग करना है तो कई डिस्क जोड़कर हम प्रयोग कर सकते हैं। जैसे यदि हमें 33 केवी के लिए प्रयोग करना है तो 3 डिस्क इंसुलेटर जोड़कर लगा सकते है।इसी प्रकार अलग-अलग वोल्टेज के लिए कितने डिस्क लगेंगे यह एक सूत्र से पता लगाया जा सकता है जो सूत्र निम्न है।
N = X kv/ (√3× 11kv)
जहां N डिस्क की संख्या है।
तथा X वह वोल्ट है जिसके लिए इन्सुलेटर की संख्या निकलनी है।
उदाहरण के तौर पर यदि हम 400 केवी के डिस्क की संख्या निकालने तो –
N= 400kv/(√3×11kb) = 20.98 disk
अतः 400 kv के लिए एक 21 डिस्क इंसुलेटर प्रयोग किए जाएंगे।
लेकिन 12% का वोल्टेज वेरिएशन होता है जिसके कारण एक डिस्क की संख्या बढ़ाकर 22 कर देंगे।
स्ट्रेन इंसुलेटर(strain insulator):-
इस प्रकार का इंसुलेटर उच्च मैकेनिकल स्ट्रेस को सहन करने के लिए बनाया जाता है। यह इंसुलेटर अलग अलग एंगल पर mechanical stress को सहता है। यह कई डिस्क इंसुलेटर को जोड़कर होरिजेंटली (horizentally) लगाया जाता है जिसे स्ट्रेन इंसुलेटर के नाम से जाना जाता है।

इसका उपयोग लाइन के शुरुआती स्थिति में तथा अंतिम स्थिति में भी किया जाता है। इसका उपयोग सेक्शन पोल (section pole) में भी किया जाता है। इसका उपयोग वहां पर भी किया जाता है जहां से लाइन एक से अधिक ब्रांच में बटी हो।
Section pole क्या होता है (what is section pole in Hindi):-
दोस्तों जब लाइन बिछाया जाता है तो तू प्रत्येक 800 या 1000 मीटर के बाद एक सेक्शन पोल लगाया जाता है इस सेक्शन पोल में दो पोल होते हैं। जैसा की चित्र में दिखाया गया है। और इसमें स्ट्रेन इन्सुलेटर का इस्तमाल किया जाता है।

इस प्रकार के पोल लगाने से हमे यह फायदा होता है कि एक तो हमे जब कहीं फॉल्ट आयेगा तो हमे उसे आसानी से डिटेक्ट कर लेंगे। और दूसरा फायदा ये होता है कि जब कभी आंधी तूफान के कारण कोई पोल टूटने लगता है तो यह सभी पोल को टूटने से बचाता है।
सस्पेंशन इन्सुलेटर (suspension insulator):-
इसमें भी डिस्क इन्सुलेटर को जोड़ कर एक लड़ीं नुमा स्ट्रिंग बनाते है। और जब इस स्ट्रिंग को vertically प्रयोग करते हैं तो इसे सस्पेंशन इंसुलेटर कहते हैं। जो कि चित्र में दिखाया गया है।

पोस्ट इन्सुलेटर (post insulator):-
यह पिन इंसुलेटर की भांति ही होता है लेकिन इसके ऊपर तथा नीचे दोनों तरफ क्लैंप सेटअप(clamp setup) की व्यवस्था होती है। ताकि इसमें और इंसुलेटर को ऐड कर सकें। इसे हाई वोल्टेज में भी इस्तेमाल किया जाता है।

आइए देखते हैं कि पिन इंसुलेटर और पोस्ट इंसुलेटर में क्या अंतर होता है।
क्र. स. | पिन इन्सुलेटर | पोस्ट इन्सुलेटर |
1 | यह 33 kv तक के ओवरहेड लाइन में इस्तेमाल किया जाता है। | यह 33 kv से ऊपर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। |
2 | इसके सिर्फ एक तरफ ही क्लैम्प सेटअप होता है। | इसके दोनो तरफ क्लैम्प सेटअप होता है। |
3 | इसमें कोई और इन्सुलेटर नहीं जोड़ सकते । | इसमें ईओ से अधिक इन्सुलेटर जोड़ सकते हैं। |
4 | इसमें कंडक्टर की इसके ऊपर तार से बाधते हैं। | इसमें तार को इसके ऊपर क्लैम्प से बाधते हैं। |
स्टे इन्सुलेटर(stay insulator):-
इस प्रकार के इंसुलेटर का प्रयोग स्टे वायर में किया जाता है। जब हम कहीं देखते हैं कि डिस्ट्रीब्यूशन लाइन किसी स्थान से ज्यादा एंगल से मूड रही है तो वहां पर हमें स्टे वायर लगाना जरूरी होता है। सेक्शन पोल के पास भी स्टे वायर लगाने की जरूरत पड़ती है।

अतः चुकी स्टे वायर जमीन में लगे एक क्लैंप से कसा होता है। अतः किसी को भी किसी कारणवश इलेक्ट्रिक शॉक ना लगे इसके लिए स्टे वायर के बीच में एक स्टे इन्सुलेटर लगाया जाता है। जो ऊपर पोल से बने तार को और जमीन से कसे तार से अलग करता है।
रील इन्सुलेटर(reel insulator):-
रील इंसुलेटर एक छोटे से आकार का होता है। जो पॉलिप्रोपिलीन का बना होता है।

Use of reel insulator in hindi:-
जब हम किसी कंजूमर को सर्विस कनेक्शन देते हैं तो हम सर्विस केबल और GI वायर को reel insulator से एक दूसरे को बांधते हैं। इसका प्रयोग सर्विस वायर को ग्राउंड होने से बचाने के लिए भी किया जाता है।
Suspension set क्या होता है(what is suspension set in Hindi):-
जब हम कहीं बड़े ट्रांसमिशन लाइन में देखते हैं कि जो इंसुलेटर वर्टिकल पोजिशन में लगा होता है तो वह सस्पेंशन सेट कहलाता है। इसमें ट्रांसमिशन वायर को प्रत्येक पोल के बाद काटना नहीं पड़ता है।

Tension set क्या होता है(what is tension set in hindi):-
जब हम ट्रांसमिशन लाइन पर इन्सुलेटर horizental पोजिशन में देखते है तो उसे tension set कहते हैं। यह सेट उस से प्रयोग किया जाता है जब या तो ट्रांसमिशन लाइन को रोड क्रॉसिंग करना हो या कहीं किसी एंगल पर मोड़ हो तो ऐसी स्थिति में प्रयोग किया जाता है। इस सेट में ट्रांसमिशन वायर को प्रत्येक पोल के बाद काटना पड़ता है। तथा उसे एक जंपर वायर से जोड़ना पड़ता है।

V-set क्या होता है(what is V-set in hindi):-
हमने कहीं कहीं ट्रांसमिशन टॉवर पर ऐसे भी इन्सुलेटर का प्रयोग देखा है जैसे कि चित्र में दिखाया गया है। इसे V – set कहते हैं। इस सेट का उस स्थानों पर प्रयोग किया जाता है। जहां ज्यादा तेज हवाएं तथा आंधी आने को संभावना होती है। क्योंकि यह V -set तार के कम्पन को रोकता है।

Suspension set, tension set तथा switchyard में लगे इन्सुलेटर में डिस्क इन्सुलेटर को संख्या:-
क्र. स. | लाइन वोल्टेज(line voltage) | सस्पेंशन सेट(suspension set) | टेंशन सेट(tension set) | स्विचयार्ड(switchyard) |
1. | 33 kv | 3 | 4 | 4 |
2. | 132 kv | 8 | 9 | 10 |
3. | 220 kv | 14 | 15 | 16 |
4. | 400 kv | 22 | 23 | 24 |
5. | 765 kv | 42 | 43 | 43 |
नोट:-
- कभी कभी 765 kv को लाइन में 15 kv के डिस्क इन्सुलेटर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि स्ट्रिंग की लंबाई कम हो सके और एक उचित ग्राउंड क्लीयरेंस (ground clearance) मिल सके।
- 400 kv के लाइन के एक टॉवर बनाने में 110 ton स्टील खपत होता है।
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