परिचय:-
दोस्तों जैसा की हम पहले ही देख चुके है की रिले के कितने प्रकार होते है। अब हम इस रिले के प्रकारों (types of relay in hindi) को अलग अलग पोस्ट के जरिए एक एक करके समझेंगे।
Types of relay in Hindi (on the basis of operation):-
जैसे कि हमने पहले ही पढ़ा है कि ऑपरेशन टाइम के आधार पर रिले निम्न प्रकार के होते हैं।
- Instantaneous relay
- Definite minimum time relay
- Differential relay
- Inverse relay
- Inverse definite minimum time relay
- Extremely inverse relay
- Very inverse relay
Instantaneous relay:-
ऐसी रिले (Types of relay in Hindi) जिसकी ऑपरेशन होने के लिए टाइम ना हो। मतलब की टाइम जीरो हो। यानी कि वह रिले जो फाल्ट आते ही तुरंत (instantaneous) ऑपरेट कर जाए उसे इंस्टैन्टेनियस रिले कहते हैं।
हालाकि अगर प्रैक्टिकली देखा जाए तो रिले के ऑपरेट होने में थोड़ा समय तो लगता है। क्योंकि समय कभी भी जीरो नही हो सकता है। यह लगने वाला समय बहुत ही कम होता है। इसीलिए हम इसे जीरो मान लेते है। यह समय लगभग 0.01 सेकंड होता है। लेकिन प्रैक्टिकली इसे जीरो नही मान सकते हैं।
इस प्रकार के रिले (Types of relay in Hindi) को जेनरेटर प्रोटेक्शन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
Definite minimum time relay (DMT):-
ऐसा रिले जिसका ऑपरेटिंग टाइम फिक्स हो और यह रिले फॉल्ट करंट के मान पर निर्भर ना करता हो तो उसे definite minumum time relay कहते है।
Differential relay:-
ऐसा रिले जो ट्रांसमिशन लाइन के दोनों तरफ के करंट का अंतर करता हो तथा जब करंट में अंतर आता है, तो सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेजता है। यदि करंट में कोई अंतर नहीं होता है तो रिले में जीरो करंट फ्लो होता है। तो इस स्थिति में रिले ऑपरेट नही करता है।
जैसा कि आप इस चित्र में देख सकते हैं कि एक ट्रांसमिशन लाइन के सेक्शन को दिखाया गया है। आप इसमें यह मान लीजिए कि ट्रांसमिशन लाइन की रेटिंग 132 / 33 kv है। जिसमे 40 MVA का पावर ट्रांसफार्मर लगा है। तथा ट्रांसमिशन लाइन के एक तरफ CT -1 लगा है, जिसका रेटिंग 200 /1 है। तथा दूसरी तरफ CT – 2 है तथा जिसका रेटिंग 800 / 1 है।

अब चुकी CT -1 का रेटिंग 200 / 1 है तो इसका मतलब यह है कि यदि ट्रांसमिशन लाइन में 200 एम्पियर धारा बहेगी तो CT के सेकेंडरी वाइंडिंग में यानी की CT -1 में 1 एम्पियर की धार बहेगी।
लेकिन आप चित्र में देख सकते हैं कि 175 एम्पियर की धारा बह रही है। तो CT -1 में 0.875 एम्पियर की धार बहेगी।

इसी प्रकार यदि हम CT -2 की अगर बात करे तो इसकी रेटिंग 800 /1 की है। अतः यदि लाइन में 800 एम्पियर की धार बह रही है तो CT -2 में 1 एम्पियर की धार बहेगी। लेकिन आप चित्र के अनुसार यदि देखे तो लाइन में 700 एम्पियर की धारा बह रही है। अतः CT -2 में भी 0.875 एम्पियर की धार बह रही है।
अब जब दोनो तरफ से 0.875 एम्पियर की धारा बह रही हैं तो रिले में इसका अंतर करने पर जो वैल्यू आएगा वही बहेगा तो इन दोनो का अंतर जीरो आएगा। अतः रिले (Types of relay in Hindi) में जीरो करेंट फ्लो करेगा। यदि इन दोनो धाराओं का मान कुछ आता तो रिले ऑपरेट कर जाती और सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेज देती।
At fault condition:-
अब हम दोष की स्थिति में देखते हैं , की चित्रानुसार यदि आपका फॉल्ट CT -2 के बाहर fault आता है। जैसा कि चित्र में दिख रहा है। और फॉल्ट के कारण माना कि 8000 एम्पियर की उच्च धारा फ्लो कर रही है।

आपको अब लग रहा होगा कि फॉल्ट करंट ज्यादा होने से अब रिले में धारा बहेगी। और रिले ऑपरेट करेगी। लेकिन आप देख सकते है कि 8000 एम्पियर की धारा जो बह रही है। उसके कारण CT -2 में 10 एम्पियर धारा बह रही है। लेकिन उतना ही धारा CT -1 में भी 10 एम्पियर की ही धारा बहेगी। अतः इस स्थिति में धारा फिर से समान हो गई है। और रिले में कोई धारा नही बहेगी।
अब फॉल्ट की दूसरी स्थिति में हम देखते है। अब मान लीजिए की कोई एक CT (Current transformer) ब्लास्ट कर गई है। तथा ट्रांसफार्मर फुल लोड पर चल रही है। इसका चित्र आप नीचे देख सकते है।

अब चुकी CT ब्लास्ट कर गई है, तो जाहिर सी बात है। उस CT के वाइंडिंग जल गए होंगे। परिणामस्वरूप CT में कोई करंट फ्लो नहीं करेगी। माना की यह CT -1 है तो आप CT -1 में दिख रहा होगा कि इसमें कोई करंट फ्लो नहीं कर रही है। जबकि CT -2 में 0.875 एम्पियर की धारा फ्लो कर रही है। (चित्रानुसार)
अब आपको करंट का अंतर आसानी से दिख रहा होगा। अतः इसी कारण रिले में 0.875 एम्पियर की धारा बहेगी। और रिले इस धारा को डिटेक्ट कर लेगा। और सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेज देगा। जिससे सर्किट ब्रेकर परिपथ को ट्रिप करा देगा।
अब हम दूसरी स्थिति मान लेते हैं कि हमारा लाइटिंग अरेस्टर (LA) ब्लास्ट कर गई है। जब लाइटिंग अरेस्टर ब्लास्ट करेगी तो हमारा लाइन अर्थ से शॉर्ट सर्किट हो जायेगा। क्योंकि LA को हम लोग ऐसे मैटेरियल से बनाते है को यह सामान्य स्थिति में अर्थ और ग्राउंड के बीच बहुत ज्यादा resistance रखता है। लेकिन जब इस पर आकाशीय बिजिली गिरती है तो यह अपने हाई रेजिस्टेंस वाले पथ को लो रेजिस्टेंस पथ में बदल कर बिजली के हाई करंट को अर्थ में पास करा देता है।
अतः जब LA में फॉल्ट आएगा तो लाइन और अर्थ के बीच का रेजिस्टेंस काम हो जायेगा जिससे लाइन और अर्थ के बीच शॉर्ट सर्किट हो जायेगा। और हाई करंट फ्लो करेगा।

चित्र में आपको दिख रहा होगा कि एक साइड की LA ब्लास्ट होने से शॉर्ट सर्किट करंट बह रही है। जो की 8000 एम्पियर है। अतः इस तरफ के CT में करंट 10 एम्पियर की फ्लो करेगी। जबकि दूसरी ओर CT -2 में पहले के जैसा ही 0.875 एम्पियर की करंट फ्लो करेगी। अब आप जब इन दोनो का अंतर देखेंगे तो आपको यह 9.125 एम्पियर है। यही अंतर वाली धारा ही रिले में फ्लो करेगी और रिले ऑपरेट कर जायेगी। और रिले सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेज देगी।
उपर्युक्त वर्णन से आप देख सकते है कि अगर इसी प्रकार ट्रांसफार्मर के किसी भी साइड में या ट्रांसफार्मर के किसी भी साइड के बुशिंग में भी किसी भी प्रकार के फॉल्ट आता है तो किसी एक तरफ के करंट का मान बढ़ने से रिले (Types of relay in Hindi) ऑपरेट कर जायेगी।
अतः हमें उपर्युक्त वर्णन से हैं नोटिस किया कि डिफरेंशियल रिले प्राइमरी साइड के CT -1 से लेकर सेकेंडरी साइड के CT -2 तक के बीच होने वाले किसी भी प्रकार के फॉल्ट को डिटेक्ट करता है। और सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेजता है।
- Differential relay में बहने वाली दोनो साइड की करंट फेस एंगल 180 डिग्री होता है।
- Differential relay में डिले टाइम जीरो यानी की instantaneous दिया जाता है।
- Differential protection को ट्रांसमिशन लाइन में में प्रोटेक्शन माना जाता है।
- Differential relay का करेंट सेटिंग फुल लोड का 20% होता है।
- ओवर करंट रिले और अर्थ फॉल्ट रिले को ट्रांसफार्मर में बैकअप प्रोटेक्शन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
यूनिट सिस्टम प्रोटेक्शन (Unit system of protection) :-
अब आप चुकी ऊपर के वर्णन से differential relay के क्रिया को अच्छे से समझ चुके हैं। अतः इस डिफरेंशियल रिले को ही ट्रांसमिशन लाइन में Unit system of protection के नाम से बुलाया जाता है।
आपने डिफरेंशियल रिले के उपर्युक्त वर्णन से देखा की यह रिले सिर्फ एक रेंज जो कि CT -1 से CT -2 के बीच होने वाली किसी भी प्रकार के फॉल्ट को डिटेक्ट करता है। और बाकी के बाहरी फॉल्ट को डिटेक्ट या सेंस नहीं करता है।अतः यही कारण है कि इसे Unit system of protection कहा जाता है।
जब यह डिफरेंशियल रिले अल्टोर्नेटर में लगे जाता है तो इसे Merge prize protection relay कहते हैं। और जब यह ट्रांसमिशन लाइन में लगता है तो इसे pilot wire protection relay भी कहते हैं।
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Relay in Hindi | रिले क्या होता और यह कैसे काम करता है
Switch gear and protection in Hindi
Inverse relay:-
जैसा कि इसके नाम से ही लग रहा है, कि ऐसा रिले जो फाल्ट करंट की मात्रा बढ़ाने पर रिले की ऑपरेटिंग टाइम घटे। आता यही कारण है कि इसे इनवर्स रिले कहते है।
आप डायग्राम में देख सकते हैं। जब हमारा फॉल्ट करंट 2 यूनिट का था तो रिले की ऑपरेटिंग टाइम 10 यूनिट था। और वही जब फॉल्ट करंट 10 यूनिट है तो रिले का ऑपरेटिंग टाइम 2 यूनिट हो जाता है।

Inverse definite minimum time relay (IDMT):-
यह रिले भी ठीक उसी प्रकार का अभिलक्षण दिखाता है जिस प्रकार से inverse relay दिखाता है। मतलब की यह रिले भी inverse characteristics दिखाता है। यह रिले भी फॉल्ट करंट का मान बढ़ने पर ऑपरेटिंग टाइम घटाता है। जैसे की आपको ग्राफ चित्र में दिख रहा होगा। लेकिन यह ग्राफ inverse वाले ग्राफ से थोड़ा अलग दिखा रहा होगा। इसके पीछे का कारण यह है यह एक निश्चित मिनिमम टाइम में ऑपरेट करता है। उस निश्चित (definite) मिनिमम टाइम से कम समय में ऑपरेट नही कर सकता है।

Extremely inverse relay and very inverse relay:-
ये दोनो रिले भी inverse characteristics दिखाता है। अतः इसका ग्राफ भी आप चित्र में देख सकते है।

- Extremely inverse relay मशीन के ओवर हीटिंग से प्रोटेक्शन के लिए उपयोग किया जाता है।
- Very inverse relay ग्राउंड फॉल्ट के प्रोटेक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है।
- Very inverse relay वहां पर प्रयोग किया जाता है जहां पर सोर्स से दूरी बढ़ने पर फॉल्ट करंट घटे।