परिचय:
जैसा कि हम सब जानते हैं कि ट्रांजिस्टर में दो जंक्शन होते हैं पहले होता है अमीटर बेस जंक्शन तथा दूसरा होता है संग्रह बेस जंक्शन। जब ट्रांजिस्टर को एक्टिव फील्ड में प्रचलित किया जाता है तो उसे स्थिति में अमीटर या उत्सर्जक जंक्शन फॉरवार्ड बॉयस में तथा जंक्शन रिवर्स बायस में होता है। ट्रांजिस्टर को एक स्विच की तरह प्रयोग किया जा सकता है। अतः सैचुरेशन क्षेत्र में दोनों जंक्शन फॉरवर्ड बायस में होते हैं जबकि कट ऑफ क्षेत्र में दोनों जंक्शन उत्क्रमण बाइस यानी कि रिवर्स बायस में होते हैं।एक पीएनपीएन युक्ति में तीन जंक्शन होते हैं। तथा इसे दो ट्रांजिस्टर रूम के समतुल्य माना जाता है। इस प्रकार की कंपोनेंट बिना बॉयोस के एक स्विच की तरह कार्य कर सकती हैं तथा इसे सैकड़ो बोल्ट की रेटिंग तथा कुछ ampere से हजारों एंपियर की धारा रेटिंग के लिए बनाया जा सकता है। इस प्रकार की युक्ति को थॉयरिस्टर (Thyristor in Hindi) कहा जाता है। तथा सर्वप्रथम इस कंपोनेंट को 1960 में जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी द्वारा बनाया गया था। जब कभी नियंत्रित भीम की आवश्यकता होती है यानी कि कंट्रोल सिस्टम की आवश्यकता होती है तो रेक्टिफायर या तो थॉयरिस्टर द्वारा किया जाता है या फिर थॉयरिस्टर और डायोड के कांबिनेशन द्वारा स्विचिंग की क्रिया के नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रिक पल्स के प्रयोग के द्वारा किया जाता है।
आज की इस पोस्ट के जरिए हम थॉयरिस्टर के उपयोग और थॉयरिस्टर क्या होते हैं इन्हीं सभी बातों को अच्छे से समझेंगे।
थॉयरिस्टर क्या होता है? (Thyristor in Hindi):
सामान्य अर्थ में थॉयरिस्टर एक सेमीकंडक्टर का कंपोनेंट होता है। यह कंपोनेंट सेमीकंडक्टर मैटेरियल से बना होता है जिसमें दो ट्रांजिस्टरों को मिलाकर बनाया जाता है इसीलिए इसे हम पीएनपीएन कंपोनेंट कहते हैं। जिसमें तीन या अधिक जंक्शन होते हैं या एक बाई स्टेबल कंपोनेंट होती है जिसे ऑन से ऑफ या इसकी विपरीत अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है।

बहुत ही काम धाराओं को ऑन या ऑफ करने के लिए हम एक ट्रांजिस्टर का उपयोग करते हैं। जिसे ऑन के लिए पहले सैचुरेशन अवस्था में तथा फिर ऑफ के लिए कट ऑफ के नीचे की अवस्था में ऑपरेट किया जाता है। ट्रांजिस्टर के अध्ययन से पता चलता है की एक ट्रांजिस्टर उच्च निर्वात ट्रायोड के समतुल्य सेमीकंडक्टर कंपोनेंट होता है। उच्च धारा के कंट्रोल के लिए हम निर्वात ट्रायोड के स्थान पर गैस से युक्त triod या thytron का उपयोग करते हैं। Thytron की समतुल्य सेमीकंडक्टर कंपोनेंट सिलीकान कंट्रोल्ड रेक्टिफायर या एससीआर (SCR in Hindi) होता है। एससीआर (SCR) एक प्रकार का थॉयरिस्टर होता है। थॉयरिस्टर सेमीकंडक्टर फैमिली की वे कंपोनेंट होते हैं जिन्हें पावर कंट्रोल के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस फैमिली में समानता प्रयुक्त होने वाले कंपोनेंट एससीआर होती है पूर्ण ग्राम इस फैमिली के अन्य सदस्य निम्न पावर कंपोनेंट होती हैं तथा थॉयरिस्टर फैमिली में निम्न प्रकार के कंपोनेंट होती हैं।
- सिलीकान कंट्रोल्ड रेक्टिफायर
- Diac
- Triac
इनमें से ऊपर की दोनों कंपोनेंट यूनिलेट्रल होती हैं। तथा तीसरी कंपोनेंट अर्थात ट्रैक बिलैटरल युक्ति या कंपोनेंट होती हैं। जिसमें (Triac) से तीन टर्मिनल होते हैं। और यह दोनों दिशाओं में ऑपरेशन करते हैं।
थॉयरिस्टर का उपयोग (uses of Thyristor in Hindi):
थॉयरिस्टर का उपयोग पावर इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में बहुत आयत रूप में किया जाता है। थॉयरिस्टर को हम पावर कंट्रोल के लिए उपयोग करते हैं। थॉयरिस्टर को हम thyretron, मरकरी अर्क रेक्टिफायर, एक्सिट्रोन और इग्नाइट्रॉन के स्थान पर करते हैं।
अतः Thyristor का उपयोग हम निम्न प्रकार से करते हैं।
- डीसी और एसी मोटरों के नियंत्रण में
- इंडक्शन हीटिंग में
- पावर ट्रांसमिशन में
- पावर नियंत्रण में
- हवाई जहाजों, कंप्यूटरों आदि के लिए आवश्यक विशेष पावर सप्लाई में।
थॉयरिस्टर का अन्य कंपोनेंट की तुलना में निम्न गुण होते हैं :
अगर हम थॉयरिस्टर के जगह पर किसी और अन्य कंपोनेंट का उपयोग करते हैं तो उसमें थॉयरिस्टर से कम गुण होते हैं और उसकी rigidity भी कम होती है। अतः अन्य कंपोनेंट की तुलना में थॉयरिस्टर का निम्न गुण होते हैं जैसे की।
- थॉयरिस्टर की आकृति अन्य कंपोनेंट की तुलना में कंपैक्ट होती है।
- इसकी संरचना छोटी और टिकाऊ होती है।
- थॉयरिस्टर में ऑन और ऑफ करने की टाइमिंग बहुत ही कम होती है। यानी कि ऑपरेटिंग टाइम बहुत ही काम होता है। यानी कि हम कह सकते हैं कि थॉयरिस्टर अन्य कंपोनेंट की तुलना में जल्दी ऑपरेट करता है।
ब्रेकडाउन डिवाइसेज क्या होती है? :
किसी सेमीकंडक्टर डायोड के biasing में हमने देखा है कि रिवर्स बॉयस की अवस्था में जंक्शन का ब्रेकडाउन हो जाता है। सेमीकंडक्टर कंपोनेंट जिनका कार्य एवलांच ब्रेकडाउन की घटना पर आधारित होता है ब्रेकडाउन युक्तियां या ब्रेकडाउन कंपोनेंट कहलाती हैं। इन्हीं कंपोनेंट को थॉयरिस्टर (Thyristor in Hindi) भी कहा जाता है। यह कंपोनेंट ही सेमीकंडक्टर स्विच कहलाती हैं। जिनकी बाई स्टेबल क्रिया पीएनपीएन रीजेनरेटिव फीडबैक पर निर्भर करती है। इस वर्ग की कंपोनेंट में प्रमुख प्रकार के कंपोनेंट आते हैं।
- यूनी जंक्शन ट्रांसिस्टर (UJT)
- सिलिकॉन कंट्रोल्ड रेक्टिफायर (SCR)
- Triac
- Diac
इन सब कंपोनेंट में दो या दो से अधिक जंक्शन होते हैं। ये बड़ी तेजी के साथ स्विच ऑन या ऑफ किया जा सकता है। इन्हें लैचिंग डिवाइसेज (latching devices) भी कहा जाता है। लैच एक प्रकार का स्विच होता है जिसे प्रारंभ में बंद कर देने पर वह तब तक बंद रहता है जब तक की कोई उसे खोलता नहीं है।
सिलिकॉन कंट्रोल रेक्टिफायर (SCR in Hindi) :
किसी थॉयरिस्टर (Thyristor in Hindi) की संरचना में एक ही क्रिस्टल पर अर्धचालक पदार्थ की चार परतें बनी होती हैं जो परस्पर एकांतर टाइप या चलकाता जैसे पीएनपीएन (PNPN) की होती हैं। प्रयुक्त पदार्थ प्रायः सिलिकॉन होता है। किनारे के P वह N टाइप क्षेत्र पर विद्युतीय कांटेक्ट बनाए जाते हैं। यानी कि उनके P व N टाइप के किनारे वाले क्षेत्रों पर टर्मिनल होते हैं। इन्हीं संपर्कों के द्वारा मुख्य धारा का प्रवाह होता है। P क्षेत्र के संपर्क को एनोड A तथा N क्षेत्र के संपर्क को कैथोड K कहते हैं।
चित्र के अनुसार एक तीसरा विद्युतीय सम्पर्क प्रायः बीच के P क्षेत्र में होता है जिसे कन्ट्रोल इलेक्ट्रोड कहते हैं। चित्र में थायरिस्टर (Thyristor in Hindi)

SCR की संरचना (Construction of SCR) –
एक विशेष SCR का परिच्छेद दृश्य चित्र में दिखाया गया है। मूल रूप से SCR, P व N टाइप अर्द्धचालक के पदार्थों के चार पर्त पैलेट (pellet) होते हैं। सिलिकॉन को इनट्रिजिक (प्राकृतिक) अर्द्धचालक के रूप में प्रयुक्त करके इसमें उचित अशुद्धियाँ मिलाकर P व N टाइप बनाया जाता है। जंक्शन या तो फ्यूज्ड होता है या ऐलोय होता है। उच्च पावर SCR के लिये मेसा (mesa) तकनीक का उपयोग किया जाता है।

इस तकनीक में अन्दर के जंक्शन को विसरण द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा फिर बाहरी दोनों पर्तों को इसके साथ ऐलोय किया जाता है। क्योंकि उच्च धाराओं को हैंडिल करने के लिये एक PNPN पैलेट की आवश्यकता होती है, अतः इसे अधिक यांत्रिक सामर्थ्य प्रदान करने के लिये टंगस्टन या मॉलिबिडनम प्लेटों के द्वारा प्रेस किया जाता है। इनमें से एक प्लेट को तांबे या एल्यूमीनियम स्टह के साथ कठोर सोल्डर किया जाता है। इस स्टड को एक ऊष्मा सिंक से जोड़ा जा सकता है। इस सींक के द्वारा आन्तरिक क्षय ( losses) को बाहरी वातावरण को चालित किया जा सकता है। पैलेट एवं प्लेटों के बीच हार्ड सोल्डर उस समय थर्मल फैटीक (Thermal fatigue) को कम करता है जबकि SCR पर ताप प्रेरित प्रतिबल कार्य करते हैं।
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माध्यम एवं निम्न पावर SCR के लिये पैलेट को सीधा ताँबे के स्टड पर लगा देते हैं जिसमें एक सॉफ्ट सोल्डर का प्रयोग किया जाता है जोकि ऊष्मा संचरण (SCR in Hindi)के लिये एक अच्छा पथ प्रदान करता है।
SCR वायसिंग (SCR Biasing):
सप्लाई वोल्टेज की पोलेरिटी को चित्र (a) के अनुसार जोड़ने पर जंक्शन J1 व J3 निम्न बॉयस हो जाते हैं तथा जंक्शन J2 उत्क्रम बॉयस पर होता है। अतः इस अवस्था में SCR में लीकेज धारा के अतिरिक्त कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।

चित्र (b) के अनुसार सप्लाई वोल्टेज V की पोलरिटी को चित्र (a) की तुलना में उलट देते हैं। अतः अब जंक्शन J1 व J3 उच्क्रम बॉयस पर तथा J2 अग्र बॉयस पर होता है। इस अवस्था में भी SCR में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।
वोल्टेज धारा अभिलक्षण (Voltage Current Characteristics) :
किसी SCR (SCR in Hindi) का जिसका गेट खुला हो वोल्टेज धारा अभिलक्षण चित्र में दिखाया गया है।

SCR के लिये ऊपर दिखायी गई बायसिंग चित्र (a) में एनोड कैथोड सर्किट अग्र बॉयस पर होता है परन्तु जंक्शन J2 के उत्क्रम बॉयस के कारण धारा प्रवाह ब्लाक हो जाता है। इस अवस्था में एक सूक्ष्म लीकेज धारा होती है, जिसे फारवर्ड ब्लाकिंग कहते हैं जो तब तक कम रहती है जब तक कि ब्रेक डाऊन वोल्टेज नहीं आ जाता है। यह फारवर्ड एवलान्व क्षेत्र होता है। यदि ऐनोड वोल्टेज को बढ़ाया जाता है। तो वोल्टेज का एक ऐसा मान प्राप्त हो जाता है जहाँ जंक्शन J2 ब्रेक हो जाता है तथा SCR यकायक उच्च चालन की अवस्था में आ जाता है। इस अवस्था में SCR (Thyristor in Hindi) बहुत कम अग्र प्रतिरोध (0-012 से 1.02 के क्रम का) उत्पन्न करता है जिससे इसके अनुदिश वोल्टेज पतन का बहुत कम मान (लगभग 1 वोल्ट) होता है जैसा कि चित्र 3.4 में दिखाया गया है। अतः इस अवस्था में SCR (SCR in Hindi) में धारा का मान केवल पावर सप्लाई व लोड द्वारा ही नियन्त्रित होता है। परिपथ में धारा अनन्त काल तक बहती रहती है जब तक कि सर्किट को खोला (OPEN) नहीं जाता है।
जब सप्लाई वोल्टेज की पोलेरिटी को बायसिंग के चित्र 3.3 (b) के अनुसार करते हैं तो SCR में धारा दो उत्क्रम बॉयस जंक्शनों J1 व J3 द्वारा ब्लाक की जाती है। जब V को बढ़ाते हैं तो एक अवस्था ऐसी आ जाती है कि वहाँ जीनर ब्रेक डाउन हो जाता है, जिससे SCR नष्ट हो जाता है। इस प्रकार SCR एक दैशिक (unidirectional) युक्ति है।
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जिस एनोड वोल्टेज पर धारा का मान यकायक बढ़ जाता है, उसे ब्रेक ओवर बिन्दु’ (Break over point) VBO कहते हैं।
इस प्रकार SCR की दो प्रचालन अवस्थाये होती हैं। एक स्विच की ON (ऑन) अवस्था को तथा दूसरी स्विच की ऑफ (off) अवस्था को प्रदर्शित करती है। जब आरोपित वोल्टेज ब्रेक ओवर बिन्दु के मान से कम होता है तो स्विच ऑफ हो जाता है। इसके विपरीत जब आरोपित वोल्टेज ब्रेक ओवर वोल्टेज से अधिक होता है तो दिष्टकारी ऑन हो जाता है तथा एनोड धारा वोल्टेज के साथ तेजी से बढ़ती है।
इस प्रकार एक SCR का कार्यकरण थायराट्रॉन की भाँति होता है। यह उत्क्रम ब्लाकिंग ट्रॉयोड थायरिस्टर तथा एक दिष्टकारी होता है क्योंकि इसमें एक अम दिशा होती है जिसमें यह चालन करता है तथा एक उत्क्रम दिशा होती है जिसमें इसका प्रतिरोध बहुत उच्च होने पर यह चालन नहीं करता है। SCR के वोल्टेज धारा अभिलक्षण के स्पष्ट है। कि पहले यह अग्र व उत्क्रम दोनों ही दिशाओं में अचालन अवस्था में होता है। जब अम वोल्टेज को बढ़ाया जाता है तो लीकेज धारा काफी नहीं बढ़ती है जब तक कि एक बिन्दु आ जाता है जहाँ एवलान्च गुणन प्रारम्भ होने के कारण वोल्टेज में तनिक सी वृद्धि से ब्रेक डाउन हो जाता है। इस अवस्था में युक्ति उच्च चालन अवस्था में आ जाती है। जब SCR स्विच ऑन अवस्था में होता है तो एनोड धारा वोल्टेज के साथ तेजी से बढ़ती है ।