परिचय:-
जैसे की हम प्रेरण मोटर के बारे में बहुत सारी बातें कर चुके हैं। लेकिन अब तक हम लोग प्रेरण मोटर की गति नियंत्रण (Speed control of induction motor in Hindi) को नहीं समझा है। तो आज के इस पोस्ट में हम इंडक्शन मोटर की गति नियंत्रण किस किस प्रकार से किया जा सकता है उस को विस्तार से समझेंगे।
इंडक्शन मोटर का गति नियंत्रण (speed control of induction motor in Hindi):-
सामान्यतः अगर देखा जाए तो थ्री फेज इंडक्शन मोटर एक स्थिर गति से चलने वाली मोटर है। जिस प्रकार से एक डीसी शंट मोटर चलता है। हालांकि ज्यादा लोड बढ़ने पर थोड़ा सा गति में बदलाव जरूर होता है। लेकिन वह बहुत ही कम होता है। अतः उसे हम नगण्य मान लेते हैं। इंडक्शन मोटर का स्पीड रेगुलेशन फुल लोड पर 5% से कम ही रहता है।
तो अगर हम कहें की इंडक्शन मोटर की गति जब डीसी शंट मोटर के समान ही है तो इसका गति नियंत्रण भी डीसी शंट मोटर के समान ही होगा तो यह गलत है। इन दोनों में यही तो प्रमुख अंतर है।
आप जानते हैं कि एक दिष्ट धारा मोटर के फील्ड रजिस्टेंस तथा आर्मेचर प्रतिरोध दोनों को एक सिंपल फील्ड रियोस्टेट के द्वारा बदलकर उसकी गति भी बदल सकते हैं। लेकिन वही इंडक्शन मोटर में ऐसा नहीं है।
इंडक्शन मोटर में गति नियंत्रण (Speed control of induction motor in Hindi) काफी कठिन होता है। क्योंकि गति नियंत्रण से उनकी दक्षता पर भी प्रभाव पड़ता है।
इंडक्शन मोटर की गति का सूत्र
N = 120f (1-S)/P
इस सूत्र के आधार पर हम यह निर्णय ले सकते हैं कि इंडक्शन मोटर का गति नियंत्रण निम्न विधियों से कर सकते हैं।
• सप्लाई फ्रिकवेंसी में परिवर्तन करके
• सप्लाई वोल्टेज में परिवर्तन करके
• स्टेटर पोल की संख्या में परिवर्तन करके
• रोटर प्रतिरोध या स्लिप में बदलाव करके
• किन्हीं दो मोटरों को सोपानी विधि से जोड़कर (By cascade connection)
• रोटर सर्किट में emf का इंजेक्शन करके
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सप्लाई फ्रिकवेंसी में परिवर्तन करके: –
इंडक्शन मोटर में सिंक्रोनस स्पीड (Ns) का सूत्र Ns = 120f/P होता है।
अतः इस सूत्र से स्पष्ट है कि यदि हम सप्लाई फ्रिकवेंसी (NS) का मान परिवर्तन करें तो मोटर में तुल्यकाली स्पीड जिसे हम सिंक्रोनस स्पीड भी कहते हैं। इसके मान में भी परिवर्तन होगा। क्योंकि इस मोटर में सिंक्रोनस स्पीड सप्लाई फ्रीक्वेंसी के समानुपाती है। जैसा कि आपको सूत्र के अनुसार पता लग रहा होगा। जब हम सप्लाई फ्रिकवेंसी को बदलेंगे तो सिंक्रोनस स्पीड में भी बदलाव होगा जिससे मोटर की गति में भी परिवर्तन होगा।
लेकिन हमें यह बात ध्यान देने की बात है कि यह विधि तभी संभव होगा जब हम अल्टरनेटर पर जो की सप्लाई वोल्टेज इंडक्शन मोटर को प्रदान करेगी उस पर सिर्फ एक ही इंडक्शन मोटर लगाया जाए। क्योंकि अन्य मोटर लगाने पर और प्राइम मूवर की गति चेंज करने पर अन्य मोटर भी इस फ्रीक्वेंसी परिवर्तन से प्रभावित होंगे। क्योंकि हमें फ्रिकवेंसी परिवर्तन करने के लिए अल्टरनेटर के प्राइम मूवर की स्पीड को भी परिवर्तित करना पड़ता है। अतः अगर देखा जाए तो इंडक्शन मोटर के स्पीड कंट्रोल का फ्रीक्वेंसी परिवर्तन करने की विधि व्यवहारिक रुप से सही नहीं है।
क्योंकि यह विधि किसी फैक्ट्री संस्थान इत्यादि पर सप्लाई आवृत्ति को हम परिवर्तन नहीं कर सकते। ऐसा करने पर सप्लाई से जुड़े अन्य उपकरण भी प्रभावित हो सकते हैं। लेकिन यदि किसी हद तक विद्युत चालित पानी के जहाजों में प्रयोग की जा सकती हैं।
सप्लाई वोल्टेज में परिवर्तन करके: –
यह विधि अगर देखा जाए तो काफी सरल और सस्ती विधि है क्योंकि हम एक ऑटो ट्रांसफार्मर की सहायता से वोल्टेज में परिवर्तन करके इंडक्शन मोटर की गति को भी परिवर्तित कर सकते हैं लेकिन यह विधि व्यवहारिक नहीं है। क्योंकि इंडक्शन मोटर की गति में परिवर्तन करने के लिए हमें वोल्टेज में परिवर्तन बहुत ज्यादा हद तक करना पड़ता है। जिससे मोटर की चुंबकीय स्थिति में काफी ज्यादा डिस्ट्रक्शन उत्पन्न हो जाता है। और मोटर की टॉर्क भी प्रभावित होती है।
स्टेटर पोल की संख्या में परिवर्तन करके: –
इंडक्शन मोटर के सिंक्रोनस स्पीड के सूत्र Ns = 120f/P के अनुसार अगर हम देखें तो यदि हम इंडक्शन मोटर के स्टेटर पोल की संख्या में परिवर्तन करें तो उसकी स्पीड जो कि सिंक्रोनस स्पीड है उसमें भी परिवर्तन देखने को मिलेगा क्योंकि सिंक्रोनस स्पीड दिए गए पोल के व्युत्क्रमानुपाती होता है जैसा कि आपको सूत्र में दिख रहा होगा।
अतः यदि हम मोटर के stator के पोल की संख्या में वृद्धि लेट तो इसके Synchronous speed में कमी आयेगी। और यदि stator pole की संख्या में कमी करें तो इसका सिंक्रोनस स्पीड बढ़ेगी। यह विधि केवल पिंजरी प्रेरण मोटर में ही प्रयोग की जा सकती है क्योंकि पिंजरी प्रेरण मोटर में रोटर ध्रुव स्टेटर ध्रुव के अनुसार स्वतः ही परिवर्तित हो जाती हैं।
इसमें ध्रुवों की संख्या परिवर्तन के लिए एक ही खांचे के दो या दो से अधिक वाइंडिंग को लगाया जाता है। और प्रत्येक वाइंडिंग में पोल की संख्या अलग अलग निर्धारित की जाती है। जिससे अलग अलग मोटर की गति प्राप्त की जा सके।
आजकल ऐसी मोटरों का निर्माण किया जा रहा है जिसमे चार – चार वाइंडिंग लगाया जाता है जिसमे पोल की संख्या अलग अलग होती है। और इसी कारण अलग अलग गति प्राप्त की जाती है।
इसमें चारो वाइंडिंग एक साथ काम में नही आती है। इसमें एक समय में एक वाइंडिंग कार्य करता है। इसमें अगर है तेज स्पीड चाइए तो हमे ऐसे वाइंडिंग का प्रयोग करेंगे जिसमे पोल की संख्या कम हो। और बाकी की शेष 3 वाइंडिंग डिस्कनेक्ट रहेंगी।
उपयोग :- सामान्यता यह विधि देखा जाता है कि एलिवेटर मोटर्स, ट्रेक्शन मोटर्स, बेल्ट कन्वेयर मोटर्स तथा मशीन औजारों को चलाने के लिए छोटी मोटरों में प्रयोग की जाती है। किसी अकेली स्टेटर कुंडल में प्रत्येक फेज की कुंडली समूह को 2:1 के ध्रुव अनुपात में जोड़कर उसी अनुपात में गति प्राप्त की जाती है।
रोटर प्रतिरोध या स्लिप में बदलाव करके (Speed control of induction motor in Hindi by changing rotor resistance or slip): –
इंडक्शन मोटर की गति को नियंत्रित करने के लिए हम रोटर के परिपथ में एक्स्ट्रा प्रतिरोध लगाकर उसके स्लिप को प्रतिवर्तित कर देते हैं। जिससे उसकी गति में भी परिवर्तन हो जाता है।
चुकी इसमें गति नियंत्रण के लिए स्लिप को परिवर्तित किया जा रहा है अतः इस विधि का प्रयोग केवल हम स्लिप रिंग इंडक्शन मोटरों में ही कर सकते हैं।
अगर देखा जाए तो सामान्यतः यह विधि आपको एक डीसी shunt motor की गति को नियंत्रित करने की armature रिहोस्टेटिक विधि के समान ही है।
इस विधि का एक दोष यह है कि इस विधि का प्रयोग करने पर यानी को गति को बढ़ाने के लिए उसके रोटर के प्रतिरोध को बढ़ाने पर रोटर को कॉपर लॉस बढ़ जाती है।
अतः ऐसी विधियों का वहा प्रयोग किया जाता है, जहां पर बहुत कम समय के लिए गति को नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
किन्ही दो मोटरों को सोपानी विधि से जोड़कर (Speed control of induction motor in Hindi By cascade connection):-
इस विधि में दो मोटरों को आपस में उसके सॉफ्ट को कप लिंग विधि द्वारा जोड़ दिया जाता है तथा इसमें यह ध्यान देना रहता है कि इन दोनों मोटरों में से एक मोटर स्लिप रिंग मोटर का होना अति आवश्यक रहे।
अतः चित्र में देख सकते हैं कि पहले चित्र में स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर मुख्य मोटर के रूप में तथा दूसरा सहायक मोटर के रूप में स्क्विरल केज इंडक्शन मोटर का इस्तेमाल किया गया है। तथा वही दूसरे वाले चित्र में आपको मुख्य तथा सहायक दोनों प्रकार के मोटर में स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर का इस्तेमाल किया गया है।


इसमें यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि मुख्य मोटर के स्टेटर तथा रोटर वाइंडिंग का रूपांतरण अनुपात 1:1 का होना चाहिए। ताकि स्थिर अवस्था में जब रोटर का बाह्य परिपथ ओपन हो तब रोटर स्लिप रिंग के पार्श्व में वोल्टता, लाइन वोल्टता के समान रहे। जिससे कि सोपानी कनेक्शन के अलावा भी प्रत्येक मोटर को अलग-अलग स्थिति में चलाया जा सके।
रोटर परिपथ में emf को इंजेक्ट करके: –
इस विधि के द्वारा हम स्लिप रिंग प्रेरण मोटर के रोटर सर्किट में वोल्टेज इंजेक्ट करके इंडक्शन मोटर की गति को नियंत्रित (Speed control of induction motor in Hindi) किया जा सकता है। इसके लिए शर्त यह है कि इंजेक्ट किए गए वोल्टेज की आवृत्ति समान होनी चाहिए। और उस वोल्टेज की फेज की प्रकृति कुछ भी हो सकती है।
जब हम रोटर सर्किट में इस प्रकार के वोल्टेज को इंजेक्ट करते हैं तो यदि इंजेक्ट किए गए वोल्टेज रोटर के बोल्ट से विपरीत फेज में रहेगी तो रोटर का प्रतिरोध बढ़ जाएगा। इस प्रकार रोटर का प्रतिरोध बदलने से रोटर की गति में भी परिवर्तन देखने को मिलेगा।
इस विधि को प्रायः 1000hp से अधिक एचपी वाली मोटरों में प्रयुक्त की जाती है। इस प्रकार की मोटर रोलिंग मिलों में लगाई जाती है। इस विधि से मोटर की कोई भी प्रकार की गति प्राप्त की जा सकती है।