परिचय:-
इस पृथ्वी पर जीवित प्रत्येक जिव का अस्तिव सूर्य के कारण ही है। इसलिए हिन्दुओं के द्वारा सूर्य को भगवान् माना जाता है। पृथ्वी पर प्राप्त होने वाली उर्जा ही सौर उर्जा (solar energy in hindi) कहलाती है। पृथ्वी पर उपस्थित प्रत्येक जिव जंतु, पेड़ पौधे तथा पानाव सूर्य से उर्जा लेकर जीवित रहता है। अतः पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा उर्जा का स्रोत सूर्य ही है।
चुकी हम सूर्य की किरणों से प्राप्त होने ज्वाली उर्जा के बारे में अध्ययन करेंगे तो हमें इसके सन्दर्भ में कुछ प्राइमरी कांसेप्ट जान लेना अति आवश्यक है। पृथ्वी का व्यास सूर्य के व्यास से छोटा होता है। यानी की पृथ्वी का व्यास 1.27 × 107 मीटर है। जबकि सूर्य का व्यास 1.39 × 109 मीटर है। और इन दोनों के बीच की दुरी 1.50× 1011 मीटर की औसत दुरी है। अतः इस हिसाब से दोनों सूर्य और पृथ्ची के बीच 32 डिग्री का कोण बनेगा। जैसा की आप चित्र में देख सकते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने विभिन्न गणनाओं को सरल बनाए के लिए इस 32 डिग्री के कोण को सुनी माना है। तथा इसे एक सीधी लाइन माना है। क्योकि दोनों के बीच काफी ज्यादा दुरी है।

सौर उर्जा क्या है (Solar energy in hindi):-
सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों का पृथ्वी की सतहों पर फ़ैल जाना ही सौर विकिरण (solar radiation) कहलाता है। पृथ्वी की सतहों पर जीतनी भी मात्रा में सौर उर्जा (Solar energy in hindi) हमें मिलती है, वो काफी कम मात्रा में हमें प्राप्त होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योकि हम जानते है की पृथ्वी के चारों ओर एक वायुमंडल है।
जिसमे विभिन्न प्रकार के गैस जैसे ओजोन गैस, जलवाष्प, कार्बोन डाई ऑक्साइड, और ओक्सिजन आदि है। और साथ में यही गैस इसके किरणों को जमीन पर फैला देती है। अतः फलस्वरूप अधिकतर सौर उर्जा ब्रह्माण्ड में वापस चली जाती है। और बहुत कम मात्र में सौर उर्जा पृथ्वी पर वापस आती है।
अब पृथ्वी पर भी दो प्रकार के वातावरण होते है। पहला वो जहाँ पर बदल नहीं लगे होते है और पूरा आस्मां साफ़ होता है। तथा दूसरा स्थानब वो जहा पर बदल आच्छादित रहते है। सौर उर्जा बदल लगाने वाले स्थानों पर बहुत कम मात्र में पृथ्वी की सतहों पर पहुंचती है।
जब सौर विकिरण सूर्य से पृथ्वी की सतहों पर बिना परिवर्तन के सतहों पर पहुंचती है तो उसे प्रयक्ष विकिरण कहते हैं। लेकिन जब सौर विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल तथा बादलों के कारण सौर उर्जा का प्रकीर्णन होता है तो उसे विसरित विकिरण कहलाता है। प्रत्यक्ष तथा विसरित विक्रियन दोनों के योग को ग्लोबल विकिरण कहते है।
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सौर विकिरण मापने के यंत्र (instrument of measuring solar radiation):-
सौर विकीर्ण को मापने के लिए बहुत सारे यंत्रो का प्रयोग किया जाता है। जिसमे से पयीरोहेलियोमीटर (pyroheliometer) पायिरोनोमीटर (pyronometer) प्रायः प्रयोग किया जाता है। सौर विकिरण की मात्रा को लंगलेय्स (Langleys) प्रति घंटा या प्रतिदिन में मापा जाता है। इन यंत्रो के द्वारा प्रत्यक्ष विकिरण तथा विसरित विकिरण दोनों प्रकार के सौर विकिरण का मापन किया जाता है।
इस पराक्र के उपकरण में थर्मोकपल का उपयोग किया जाता है। सौर विकिरण की मापन की इकाई लंग्लेय्स, विश्व प्रसिद्ध सौर उर्जा वैज्ञानिक Samuel Langleys के नाम पर रखा गया है।
सौर उर्जा कलेक्टर (solar energy collector):-
अगर हमें सौर उर्जा का उपयोग करना है तो हमें ऐसे यन्त्र का निर्माण करना होता है जो सौर उर्जा को कलेक्ट कर सके। इसीलिये हमें सौर उर्जा कलेक्टर की जरुरत पड़ती है। ये सौर उर्जा collector निम्न प्रकार के होते हैं।
- असंकेद्रित या फ्लेट प्लेट टाइप कलेक्टर (Non-concentric or flat plate type solar energy collector):-
- संकेंद्रित या फ़ोकसिंग टाइप कलेक्टर (Concentric or focusing type solar energy collector)
असंकेंद्रित या फ्लैट प्लेट टाइप सौर ऊर्जा कलेक्टर (Non-concentric or flat plate type solar energy collector):-
इस प्रकार की सौर ऊर्जा कलेक्टर आयताकार साइज में बने होते हैं। जिनका का क्षेत्रफल लगभग 1।7 से 2।9 स्क्वायर मीटर होता है। इसकी संरचना बहुत सिंपल होती है। और यह दोनों प्रकार के सौर विकिरण प्रत्यक्ष और विस्तृत विवरण की स्थिति में काम करता है। अतः यह उन स्थानों पर भी आंशिक रूप से काम करता है जहां पर वायुमंडल में बादल लगे होते हैं।
फ्लैट प्लेट टाइप सोलर कलेक्टर का उपयोग (Uses of flat plate type solar collector):-
Flat plate type solar collector के द्वारा सौर ऊर्जा को एकत्र करते हैं तथा इस ऊर्जा से पानी तथा हवा को गर्म करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके अंतर्गत निम्न प्रकार के यंत्र आते हैं।
- सौर ऊर्जा कुकर (Solar cooker)
- सौर जल हीटर (Solar water heater)
- सौर ड्रायर (Solar drayer)
- सौर ऊर्जा आसवन यूनिट (Solar energy distillation unit)
सौर ऊर्जा कुकर (Solar cooker):-
इस यंत्र के जरिए हम खाना पका सकते हैं। जिसमें खाना पकाने के लिए सोलर एनर्जी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
सोलर कुकर हमारे देश भारत के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है। क्योंकि हमारे देश की अधिकतर आबादी गांव में निवास करती है। जिसमें गरीबों की भी संख्या काफी होती है।
ऐसे में हमें सोलर कुकर इंधन की खरीदारी पर बचत करा सकता है। हम गांव में खाने पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले गैस, मिट्टी का तेल तथा उपला (dung cake) की जगह सोलर कुकर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें खास बात यह भी है कि इससे प्रदूषण रहित काम किया जा सकता है। सरकार को इसके लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
भारत में पहली बार 1945 ईस्वी में जमशेदपुर में एक स्वतंत्रता सेनानी के द्वारा सोलर कुकर को जनता के सामने प्रस्तुत किया गया था। लेकिन उस समय लोगों ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उनका नाम श्री M. K. Ghosh था। लेकिन नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री ने सन 1953 में फिर से लोगो के सामने प्रस्तुत किया उसके बाद सन् 1980 के बाद इस पर ध्यान दिया जाने लगा ।
सोलर कुकर की संरचना (Structure of solar cooker):-
इसकी संरचना काफी सरल होती है। इसको आसानी से समझने के लिए मान लीजिए कि एक आयताकार बॉक्स है। जो अंदर की सतहों पर काले रंग से पेंट किया होता है। तथा इसको ऊपर से एक कांच के ढक्कन से ढक दिया जाता है। तथा कांच के ढक्कन के किनारों पर रबर की पैकिंग कर दी जाती है।
इस बॉक्स के अंदर जिस भी चीज को पकानी होती है, उसे रखा जाता है। और कुछ ही घंटों में खाना पक कर तैयार हो जाता है। सोलर कुकर की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें खाना थोड़ा देर से पकता है।
जब कुकर में ऊपर का कांच का एक ढक्कन लगाते हैं तो अंदर का तापमान 108 डिग्री सेल्सियस से 160 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। लेकिन जब हम दो कांच के ढक्कन लगा देते हैं तो तापमान बढ़कर 250 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।
सोलर कुकर भी बहुत से प्रकार के होते हैं जो कि निम्न है।
- समतल बॉक्स प्रारूप सोलर कुकर
- बहु परावर्तक प्रारूप ए सोलर कुकर
- परवलय डिस्क प्ररूपी सोलर कुकर
सौर जल हीटर (Solar water heater):-
सोलर वाटर हीटर का उपयोग पानी को गर्म करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आजकल का पीढ़ी इस पर ज्यादा जोर दे रही है। क्योंकि सरकार भी इसके क्षेत्र में काफी प्रोत्साहित कर रही है। इस यंत्र को अब बड़े – बड़े अस्पतालों, होटलों तथा सरकारी आवासों में भी लगाया जा रहा है। इस क्षेत्र में जापान अमेरिका तथा इजरायल सबसे आगे है।
इसका बेसिक सिद्धांत यह है कि एक काले रंग से रंगे कॉपर या किसी धातु के पाइप पर सौर ऊर्जा डाला जाता है। तथा या काले रंग का धातु उसमें ऊर्जा को अवशोषित कर के पानी को ट्रांसफर कर देता है तथा पानी गर्म हो जाता है।
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Solar water heater के प्रकार (Types of solar water heater):-
सोलर वाटर हीटर भी कई प्रकार के होते हैं जो कि निम्न है।
- Shallow trough of water heater
- Japan type water heater
- Trough type water heater
- Japan pipe type water heater
- Black rubber hose pipe type water heater
- Modern commercial type water heater
सोलर ड्रायर (Solar drayer):-
हमारे देश में सोलर ड्रायर का तो हम कई सालों से प्रयोग करते आ रहे हैं। जैसे की धान की फसल काटने के बाद उसे धूप में सूखने के लिए छोड़ देते हैं। इस सिद्धांत का प्रयोग हम सोलर ड्रायर में करते हैं। इसमें दो प्रकार के ड्रायर आते हैं।
- प्रत्यक्ष प्ररूपी ड्रायर
- अप्रत्यक्ष प्रारूपी ड्रायर
प्रत्यक्ष प्रारूप में हम एक बड़ा सा चेंबर बनाए रहते हैं। जिसके अंदर फल सब्जी और फसलें सूखने के लिए रखी जाती हैं। उसके बाद उस चेंबर को कांच के ढक्कन से ढक दिया जाता है। तथा उसे धूप में रखा जाता है। इसका उपयोग गन्ने की खोई, नारियल की खोई, पुआल आदि सुखाने में किया जाता है।
अप्रत्यक्ष प्रारूप के ड्रायर का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनाजों जैसे धान को सुखाने के लिए किया जाता है। इसमें एक सौर ऊर्जा (Solar energy in hindi) की मदद से पहले वायु को गर्म किया जाता है। इसके लिए वायु हीटर लगाया जाता है। तथा उस गरम वायु को मोटर की मदद से खींच कर ड्राइंग चेंबर में भेजा जाता है। ड्राइंग चेंबर में रखा गया अनाज इस प्रकार से सूखा लिया जाता है।
सौर ऊर्जा जल आसवन इकाई (Solar water distillation unit):-
इस प्रकार का यंत्र सबसे ज्यादा अरब देशों द्वारा प्रयोग किया जाता है क्योंकि वहां पर पीने योग्य पानी ना के बराबर होता है। ऐसे में उन देशों को समुंदर के पानी ही पीने योग्य बनाने के लिए ऐसे यंत्र को स्थापित करना पड़ता है।
यह यंत्र नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा प्लांट होता है। इस प्लांट के द्वारा खारे पानी को पीने योग्य पानी बनाया जाता है। इसकी क्षमता 500 से 25000 लीटर तक होती है।
इसमें एक काले रंग का बेसिन होता है जो तली का काम करता है। इसके ऊपर कांच का एक ढक्कन लगा होता है। यह ढक्कन ढाल नुमा आकार का होता है। जब सौर ऊर्जा ढक्कन से होते हुए नीचे ताली तक जाती है तो तली काली होने के कारण यह ऊष्मा को अवशोषित कर लेती है।
जिससे इसके तली में रखा खारा पानी भी गर्म हो जाता है और पानी गर्म होता है तो पानी वाष्प बनकर ऊपर उठती है। तथा ऊपर लगे ढक्कन से टकराती है। चुकी ढक्कन का तापमान ठंडा होता है अतः ऊपर जाकर वाष्प पुनः पानी में बदल जाता है। जो शुद्ध जल यानी पीने योग्य पानी होता है। ढक्कन के ढाल नुमा होने के कारण यह जल किनारे से बाहर की तरफ निकाली जाती है। इसके खारे पानी को एक पाइप के सहायता से धीरे-धीरे पहुंचाते रहते हैं।
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संकेंद्रित या फोकसिंग टाइप सोलर एनर्जी कलेक्टर (Concentric or focusing type solar energy collector):-
यह एक ऐसा यंत्र है जो अधिक तीव्रता वाले सौर विकिरण का संग्रह, उर्जा का अवशोषण करने वाले सतह पर करता है। इसमें इसके नाम से ही पता लग रहा है कि सौर ऊर्जा (Solar energy in hindi) का अवशोषण किसी एक संकीर्ण क्षेत्रफल पर किया जाता है। इसके लिए इस कलेक्टर में विभिन्न प्रकार के रिफ्लेक्टर या रेफरेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सौर ऊर्जा को एक ही स्थान पर अपवर्तक या परावर्तक के द्वारा फोकस कराया जाता है। इस प्रकार के कलेक्टर में निम्न तीव्रता 1।5 से 2 तथा उच्च तीव्रता 10000 तक बढ़ा सकते हैं।
इसमें सौर ऊर्जा एक बड़े से क्षेत्रफल वाले प्लेट पर गिरती है। लेकिन उस उर्जा को बहुत कम क्षेत्र वाले और शोषक यंत्र पर फोकस कराया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप अधिक ऊष्मा उर्जा उत्पन्न होती है। जिसका उपयोग किसी चीज को अधिक तापमान तक गर्म करने के लिए किया जा सकता है।
सन केंद्रित या फोकसिंग सौर ऊर्जा कलेक्टर भी निम्न प्रकार के होते हैं।
- Parabolic trough collector
- Mirror strip collector
- Fresnel lens collector
- Flat plate collector with adjustable mirror
संकेंद्रित या फोकसिंग कलेक्टर के उपयोग (Uses of concentric or focusing collector):-
सौर ऊर्जा के फोकसिंग कलेक्टर का निम्न उपयोग होता है।
- सोलर वाटर हीटर
- बिल्डिंग हीटर
- बिल्डिंग कूलर
- इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन
Solar water heater :-
संकेंद्रित कलेक्टर का उपयोग भी पानी को गर्म करने के लिए किया जाता है। बड़े बड़े होटलों, अस्पतालों में सर्दियों के मौसम में गरम पानी को सप्लाई देने के लिए इस यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
बिल्डिंग हीटिंग और कूलिंग :-
सर्दी में मकानों को गर्म रखने के लिए या गर्मी में मकानों को ठंडा रकाहने के लिए भी इस विधि का उपयोग किया जाता है।
सोलर पैनल के द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पादन :-
सौर ऊर्जा (Solar energy in hindi) का सबसे अच्छा तरीके से प्रयोग करना है तो उसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके करना सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है। यह विधि आने वाले भविष्य में क्रांति ला सकती हैं। इसमें सौर ऊर्जा को फोटोवॉल्टिक सेल के जरिए विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। और इस विद्युत ऊर्जा को हम अनेक कामों जैसे पंप चलाना, घर में लाइटिंग, पंखे, मिक्सर आदि उपकरण को चलाने के काम में लाते हैं।
इस विधि में सौर ऊर्जा को फोटोवोल्टिक प्रभाव या प्रकाश विद्युत प्रभाव (photo voltaic effect) द्वारा सीधे विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।
इसमें बहुत सारे छोटे छोटे फोटोवॉल्टिक सेल को श्रेणी में या समांतर में जोड़कर उसे अधिक वोल्टेज प्राप्त करते हैं तथा उसे उपयोग में लाते हैं। इसमें सेलों को एक बड़े से प्लेट पर व्यवस्थित ढंग से लगाया जाता है तथा इस सेल के ऊपर कांच का एक वाटर प्रूफ और एयर प्रूफ केसिंग किया जाता है ताकि वह विभिन्न प्रकार के वातावरण प्रभाव से बच सके। इस पूरे प्लेट को सोलर पैनल (Solar panel in Hindi) कहते हैं।
ये फोटो voltaic cell semiconductor मटेरियल के बने होते है। इसमें सेमीकंडक्टर मटेरियल के तौर पर सिलिकॉन SiO2 का प्रयोग किया जाता है।
तो दोस्तों ,मैं आशा करता हु की solar energy in hindi को आप ने अछे से होगा, अगर आपको इस आर्टिकल से सम्बंधित कुछ सवाल है तो हमे जरुर बताएं।