परिचय:-
आपने कभी भी जरूरी सुना होगा कि एसी का करेंट कंडक्टर के ऊपरी सतह पर फ्लो करता है। तथा डीसी करेंट पूरे चालक तार पर समान रूप से फ्लो करता है। तो एसी करंट का सर्फेस पर फ्लो होना ही स्किन इफेक्ट (Skin effect in Hindi) कहलाता है। अतः आज के इस पोस्ट में स्किन इफेक्ट के बारे में विस्तार से जानेंगे।
स्किन इफेक्ट क्या है (skin effect in Hindi):-
अल्टरनेटिंग करेंट (AC) का कंडक्टर के सर्फेस या बाहरी सतह पर फ्लो होना ही। स्किन इफेक्ट कहलाता है। स्किन इफेक्ट के कारण हमारे कंडक्टर की ओवरऑल साइज में असर पड़ता है। अब आइए इसको समझते है कि आखिर एसी करंट कंडक्टर की सतह पर फ्लो क्यों करता है।
Explanation of skin effect in Hindi:-
स्किन इफेक्ट की घटना कैसे होती है। इसको समझने के लिए हम मान लेते हैं कि एक चालक तार है। जो मान लीजिए कि कई लेयर या परत से मिलकर बना है। जैसे को चित्र में दिखाया गया है।

चित्र
अब जब इस परत वाले चालक तार में धारा प्रवाहित होगी। तो प्रत्येक परत में चुंबकीय flux उत्पन्न होगा। जिससे प्रत्येक परत का अपना इंडक्टेंस (inductance) उत्पन्न होगा। अतः इंडक्टंस (L) = N φ/i होगा।
यदि N= 1 तो L = φ/i होगा।
यह जो प्रत्येक लेयर का flux है। यह flux इस प्रकार उत्पन्न होता है कि सबसे बाहरी लेयर का flux अपने से अंदर के सभी लेयर में उत्पन्न हुई flux को लिंक या कटता है। और यह flux कट करने की प्रक्रिया प्रत्येक लेयर के लिए होती है। अतः इस प्रकार हम देखेंगे कि एकदम जो अंदर का लेयर है यानी की जो केंद्र में पास वाला लेयर है। उस लेयर में उत्पन्न flux को सभी बाहरी लेयर का flux लिंक कर रहे हैं। जिससे केंद्र में स्थित लेयर का इंडिक्टेंस सबसे ज्यादा होगा। और इसी प्रकार चुकी सब बाहर के लेयर को कोई flux लिंक नही कर रही है इसीलिए बाहर के लेयर का इंडक्टेंस सबसे काम होगा।
अब जब अंदर के लेयर का इंडिक्टेंस ज्यादा होने से उस लेयर का inductive reactance (XL) भी अधिक होगा। क्योंकिXL = 2πfL जिसमे अगर हम inductance (L) का मान बढ़ने पर XLका मान बढ़ेगा।
और वही पर बाहरी लेयर का inductive reactance सबसे कम होगा। अतः कंडक्टर के केंद्र में या सेंटर में इंडक्टेंस का मान सबसे अधिक होने के कारण AC करेंट केंद्र से न होकर सर्फेस पर फ्लो होती है। क्योंकि इंडक्टिव रिएक्टंस सेंटर में ज्यादा होने पर करेंट फ्लो का विरोध करती है।
LC > LS
जहां LC = Inductance of centre of conductor
LS = inductance of surface of conductor
इसलिए XLc > XLs
केंद्र में उच्च इंडक्टस का अल्टरनेटिंग करेंट का करेंट डेंसिटी केंद्र में काम और सर्फेस पर ज्यादा होती है। करेंट डेंसिटी का सूत्र J = I/a होता है।
Skin effect in DC :-
उपर्युक्त वर्णन में हमने सिर्फ एसी सप्लाई के लिए समझ है। अब क्या यह dc supply के केस में ऐसी स्थिति आती है। की करेंट चालक के सतह पर फ्लो हो तो आइए इसे समझते हैं।
तो सबसे पहले तो हम ये समझते हैं कि एसी के केस में ऐसा क्यों हो रहा था। हमने पढ़ा है कि एसी सप्लाई के केस में हमारा केंद्र में inductance का मान बहुत अधिक हो रहा था। और सर्फेस पर कम। लेकिन ये inductance का मान क्यों बढ़ रहा था। क्योंकि ac में हम जानते है की frquency होती है।
जिसके inductive reactance XL का मान बढ़ रहा था। जैसा की XL = 2πfL सूत्र में दिखाया गया। लेकिन अगर हम डीसी सप्लाई की बात करें तो इस हैं जानते है की dc supply में frequency का मान जीरो होता है। अतः जब हम XL के सूत्र में फ्रीक्वेंसी (f) का मन जीरो रखेंगे तो हमारा XL का मान भी जीरो आएगा।
मतलब की dc के केस में किसी भी प्रकार का inductance उत्पन्न नही होगा। और डीसी करेंट कंडक्टर के पूरे सतह पर समान रूप से बहेगी। यही बेसिक कारण है जिससे डीसी में स्किन इफेक्ट की समस्या नहीं आती है।
स्किन इफेक्ट के प्रभाव :-
स्किन इफेक्ट के कारण हमारे कंडक्टर और पावर सप्लाई में कुछ प्रभाव पड़ते है। जो निम्न है।
- स्किन इफेक्ट के कारण हमारे कंडक्टर का ओवरऑल क्रॉस सैक्शनल एरिया का साइज घाट जाता है। जिससे प्रतिरोध बढ़ जाता है।
- Ac supply के केस में कंडक्टर के रेजिस्टेंस dc supply के तुलना में 1.2 गुना बढ़ जाता है। (Rac = 1.2 Rdc)
- यदि एसी सप्लाई को frequency बढ़ेंगी तो स्किन इफेक्ट की घटना भी बढ़ेगा।
- यदि कंडक्टर का डायमीटर बढ़ेगा तो स्किन बढ़ेगा।
- यदि पर्मीबिलिटी बढ़ेगी तो स्किन इफेक्ट बढ़ेगा।
नोट:-
ACSR (Aluminum conductor steel reinforce) conductor को स्किन इफेक्ट के आधार पर डिजाइन किया गया है। इस ACSR कंडक्टर के बीच में स्टील का जो को एल्यूमीनियम से ज्यादा प्रतिरोध वाला है उसको लगाया जाता है। स्टील वायर को बीच में इसीलिए लगाया जाता है। क्योंकि एसी सप्लाई के केस में करेंट कंडक्टर के सर्फेस पर फ्लो होती है। अतः स्टील के तार को हम बीच में लगा देते है । जिसमे से करेंट बहुत कम फ्लो होती है। और हमारा कंडक्टर मैकेनिकल रूप से मजबूत भी होता है।