Single Phase induction motor in Hindi

Introduction (परिचय):-

इंडक्शन मोटर ही एक ऐसा मोटर है जो लगभग पूरे विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाए जाने वाली मोटर है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह सभी मोटरों की अपेक्षा अधिक रॉबस्ट होती है। तथा इसका मेंटेनेंस भी कम लगता है। इंडक्शन मोटर में दो प्रकार के मोटर्स होते हैं। पहला 3 फेज इंडक्शन मोटर तथा दूसरा, सिंगल फेज इंडक्शन (Single phase induction motor in Hindi) मोटर होता है।

थ्री फेज इंडक्शन मोटर अधिकांश तौर पर इंडस्ट्रियल स्तर पर प्रयोग किया जाता है, जबकि सिंगल फेज इंडक्शन मोटर लोकल तथा कम पावर के लोड पर चलाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर (single phase induction motor in Hindi):-

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर एक फेज तथा एक न्यूट्रल पर चलता है। अतः से सिंगल फेज इंडक्शन मोटर करते हैं। सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की संरचना की दृष्टि से लगभग थ्री फेज इंडक्शन मोटर की भांति ही होता है। लेकिन इस मैं अंतर सिर्फ इतना होता है कि इसमें सिंगल फेज वाइंडिंग होती है। दूसरा अंतर इसमें यह देखा जा सकता है कि सिंगल फेज इंडक्शन मोटर में सेंट्रीफ्यूगल स्विच लगा होता है। यह स्विच मोटर को स्टार्ट करने में सहायक होता है। यह सेंट्रीफ्यूगल स्विच किसी-किसी इंडक्शन मोटर में लगा होता है। आजकल तो सिंगल फेज इंडक्शन मोटर को स्टार्ट करने के लिए स्टार्टर के रूप में कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त वर्णन से पता चलता है कि सिंगल फेज इंडक्शन मोटर सेल्फ स्टार्ट नहीं होता है।

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर स्वचालित क्यों नहीं होता है? :-

अगर हम 3 फेज इंडक्शन मोटर की बात करें तो हम देखते हैं कि थ्री फेज इंडक्शन मोटर में थ्री फेज वाइंडिंग होती है। और थ्री फेज वाइंडिंग मोटर के अंदर एक रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड पैदा करती है। जिससे थ्री फेज इंडक्शन मोटर सेल्फ स्टार्ट हो जाता है। क्योंकि यह रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड रोटर को घुमाने में सहायक होती है।

लेकिन वह सिंगल फेज इंडक्शन मोटर में सिंगल फेज होता है जिससे मोटर के अंदर रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड न पैदा होकर इसमें एक पलसेटिंग मैग्नेटिक फील्ड पैदा होता है जिससे मोटर का रोटर सिर्फ कंपन करता है। अतः सॉफ्ट को घुमाने के लिए एक अलग व्यवस्था करना पड़ता है।

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर को स्वचालित कैसे बनाया जा सकता है:-

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर को स्वचालित बनाने के लिए मोटर के वाइंडिंग को स्प्लिट वाइंडिंग करते हैं। स्प्लिट वाइंडिंग का मतलब यह होता है कि एक ही वाइंडिंग को दो भागों में विभाजित कर देना।

इनमें से एक वाइंडिंग, स्टेटर वाइंडिंग या मेन वाइंडिंग होती है तथा दूसरा वाइंडिंग स्टार्टिंग वाइंडिंग या रनिंग वाइंडिंग या सहायक वाइंडिंग कहलाता है।

मेन वाइंडिंग को मोटे तार से बनाया जाता है ताकि बाइंडिंग का प्रतिरोध कम रहे। तथा स्टार्टिंग वाइंडिंग को पतले तार से बनाया जाता है ताकि इसका प्रतिरोध अधिक बना रहे।

स्टार्टिंग बिल्डिंग का काम सिर्फ मोटर को स्टार्ट करने के लिए ही होता है। जब मोटर अपने 70 से 80% गति में होता है तो सेंट्रीफ्यूगल स्विच के जरिए इस स्टार्टिंग वाइंडिंग का कनेक्शन काट दिया जाता है। तथा फुल स्पीड पर सिर्फ मेन वाइंडिंग ही सप्लाई से जुड़ी रहती है।

Single Phase induction motor in Hindi

मेन वाइंडिंग तथा स्टार्टिंग वाइंडिंग को मोटर के रोटर में एक दूसरे से 90 डिग्री पर लगाया जाता है। दोनों बाइंडिंग को 90 डिग्री पर लगाने का मतलब यह होता है कि यह दो बाइंडिंग दो फेजी वाइंडिंग की तरह व्यवहार करने लगती है। यह दोनों वाइंडिंग मिलकर एक रोटेटिंग फ्लक्स पैदा करती है तथा मोटर स्वचालित हो जाती है।

उपर्युक्त वर्णन से हम देखते हैं कि जब दोनों बाइंडिंग के धाराओं के के बीच जितना फेज अंतर (phase difference) अधिक होता है, जिसमें से 90 डिग्री का फेज डिफरेंस का सबसे अच्छा माना जाता है, तो उस मोटर के लिए स्टार्टिंग टॉर्क उतना ही अच्छा मिलता है।

अतः दोनों धाराओं के मध्य उचित फेज डिफरेंस पैदा करने के लिए निम्न विधियां होती है।

फेज स्प्लिटिंग विधि :-

जैसा कि हम जान चुके हैं कि इसमें दो वाइंडिंग 90 डिग्री पर रखते हैं। इसमें मेन बाइंडिंग का प्रतिरोध कम होता है लेकिन प्रतिघात (Reactance) ज्यादा होता है। और रनिंग वाइंडिंग का प्रतिरोध ज्यादा होता है लेकिन उसका प्रतिघात कम होता है।

आप नीचे दिए गए चित्र को देख सकते हैं कि इसमें मेन वाइंडिंग तथा रनिंग वाइंडिंग दोनों लगाया गया है। तथा रनिंग बाइंडिंग के सीरीज में एक प्रतिरोध तथा एक सेंटर सेंट्रीफुगल स्विच (Centrifugal switch) लगाया गया है। रनिंग वाइंडिंग के सीरीज में लगाया गया प्रतिरोध जरूरत पड़ने पर वाइंडिंग का प्रतिरोध इसके द्वारा बढ़ाया जा सकता है।

Single Phase induction motor in Hindi

फेजोर डायग्राम के अनुसार माना स्टार्टिंग वाइंडिंग ले द्वारा Is धारा तथा V वोल्ट लगाया गया है। तथा Is धारा V बोल्ट से एक छोटे से कोण φ से पश्चगामी है। मेन वाइंडिंग का प्रतिघात अधिक होने से इसके द्वारा ले गई धारा Im , प्रयुक्त वोल्टेज V से एक कोण से पश्चगामी है। जैसा कि चित्र में दिख रहा है।

इससे हम देखते हैं कि Is और Im के बीच का कोण α है। जो कि सबसे महत्वपूर्ण कोण है। क्योंकि यह कोण α ही स्टार्टिंग टॉर्क के समानुपाती होता है। अतः यह कोण (sinα) जितना बड़ा होगा उतना ही हमे अच्छा स्टार्टिंग टॉर्क मिलेगा। अतः इस कोण को जहां तक संभव हो अधिक ही रखा जाता है।

रनिंग वाइंडिंग की श्रेणी में एक सेंट्रीफुगल स्विच भी लगा होता है। जब मोटर अपनी स्पीड का 70 से 80% तक पहुंच जाता है तो वह सेंट्रीफ्यूगल स्विच ऑटोमेटिक स्टार्टिंग वाइंडिंग को सप्लाई से डिस्कनेक्ट कर देता है।

कैपेसिटर विधि द्वारा स्वचालित बनाना: –

इस विधि में भी यही ध्यान दिया जाता है कि स्टार्टिंग वाइंडिंग के धारा के फेजर तथा मेन वाइंडिंग की धारा के फेजर के बीच का कोण अधिक से अधिक रहे। अतः आप नीचे चित्र में देख सकते हैं कि स्टार्टिंग वाइंडिंग के सीरीज में 1 कैपसीटर तथा एक सेंट्रीफ्यूगल स्विच S जोड़ा गया है।

Single Phase induction motor in Hindi

इसमें स्टार्टिंग वाइंडिंग में धारा Is वोल्टेज भी से 5 डिग्री अग्रगामी होगा। तथा मेन बाइंडिंग में धारा Im वोल्टेज V से पश्चिम गांव में होगा। जैसा की चित्र में दिख रहा है।

इस स्थिति में भी Is तथा Im के बीच का कोण काफी बड़ा बनेगा और स्टार्टिंग टॉर्क तक काफी अच्छा मिलेगा।

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर का उपयोग (uses of single phase induction motor in Hindi): –

  • इसका उपयोग पंखों की मोटरों में किया जाता है।
  • 0.5 से 1hp तक के वाटर पंप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • इंडस्ट्री में छोटी कामों को करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • स्टैंड फैन में भी इसका उपयोग किया जाता है।

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