परिचय (Introduction):-
अगर आप यह पोस्ट देख रहे हैं तो जाहिर सी बात है आप इलेक्ट्रिकल के क्षेत्र से संबंध रखते हैं। इसलिए आप पावर फैक्टर के बारे में जरूर सुना होगा या पढ़ा होगा। इलेक्ट्रिकल के क्षेत्र में पावर फैक्टर (Power factor in hindi) का कितना महत्व है यह बात आप अच्छी तरह से जानते हैं।
तो आज किस पोस्ट में हम पावर फैक्टर क्या होता है और इसको हम कैसे सुधार सकते हैं यह सब हम आसान भाषा में समझेंगे।
पावर फैक्टर (Power factor in Hindi): –
अगर हम एक लाइन में कहे तो पावर फैक्टर (PF) रियल पावर(real power) तथा आभासी पावर (Apparent power) का अनुपात होता है। जैसे –
PF = KW / KVA = रियल पावर / आभासी पावर
अगर हम आजकल की लोड की प्रकृति के बारे में बात करें तो हम देखते हैं कि पूरे इलेक्ट्रिकल डिसटीब्यूशन सिस्टम पर जो लूट लगाया जाता है वह अधिकतर प्रेरणिक लोड या इंडक्टिव लोड (Inductive load in hindi) होता है। उदाहरण के तौर पर अगर हम देखें तो मोटर ट्रांसफार्मर ट्यूबलाइट प्रेरणिक भट्टी आदि यह सब इंडक्टिव लोड (Inductive load in hindi) के उदाहरण हैं और हम आजकल इसी प्रकार के लोड का ज्यादातर इस्तेमाल करते हैं। अतः हमारा पूरे पावर वितरण सिस्टम में लोड इंडक्टिव होता है। अतः हमारा पावर फैक्टर लेगिंग होता है।
अब चुकी लोड की प्रकृति इंडक्टिव है तो इस प्रकार की लोड में पावर की खर्च दो प्रकार से होता है।
- पहला वह पावर जो हमें वास्तव में जरूरत होती है। जिसे हम रियल पावर ट्रू पावर या वर्किंग पॉवर कहते हैं। जिसे हम किलोवाट (kw) से प्रदर्शित करते हैं।
- दूसरा पावर होता है रिएक्टिव पावर जो इंडक्टिव लोड में मैग्नेटिक फील्ड को पैदा करने मैं इस्तेमाल होता है। इसका मात्रक KVAR होता है। जिसका फुल फॉर्म kilo -ampear – Reactive होता है।
अब वर्किंग पॉवर और रिएक्टिव पावर यह दोनों प्रकार के पावर मिलकर आभासी पावर बनाते हैं। क्योंकि इन दोनों का परिणामी आभासी पावर (Apperant power) होता है। जैसे कि चित्र में आप देख सकते हैं।



चित्र के अनुसार हम देखते हैं तो यह पता चलता है कि पावर फैक्टर को cos φ से प्रदर्शित करते हैं।
अब आइए पावर फैक्टर को दूसरे भाषा में समझते हैं। कल्पना कीजिए कि बियर का एक गिलास आपके सामने रखा हुआ है। जब shopkeeper उसमें बीयर डाला तो आपने देखा कि बीयर गिलास के ऊपर का एक चौथाई हिस्सा (1/4) सिर्फ झाग से भरा हुआ है। अब झाग आपके लिए महत्वपूर्ण या उपयोगी नहीं है। लेकिन फिर भी आप उस शॉपकीपर को पूरे ग्लास का पैसा देते हैं यानी की झाग वाले हिस्से का भी पैसा देते हैं। जबकि आपके गिलास में सिर्फ तीन चौथाई हिस्सा ही बीयर का था।

इसी प्रकार पावर फैक्टर वह होता है जिसको अगर सुधारा नहीं जाए तो आप बिजली की पूरी मात्रा को खर्च नहीं
कर पाएंगे लेकिन आपकी बिजली का बिल उतना ही आएगा। एक लाइन में कहें तो आप पावर को अच्छे से उपयोग या यूटिलाइज नहीं कर पाएंगे।
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पावर फैक्टर को कैसे सुधारा जा सकता है? (How can be improved the power factor):-
चलिए अब हम समझते हैं कि पावर फैक्टर को कैसे सुधारा जा सकता है। इसके जवाब में हम यह कह सकते हैं कि अगर हम लोड के समांतर में कैपसीटर लगा दें तो हमारा पर पावर फैक्टर सुधर सकता है। ऐसा कैसे होता है आइए समझते हैं।
मान लीजिए हमारे घर में दो प्रकार के लोड रेजिस्टिव तथा इंडक्टिव लगा है। जिसका सर्किट नीचे दिखाया गया है।

अतः इस लोड में रेजिस्टिव लोड के कारण पावर फैक्टर यूनिटी तो होगा लेकिन इंडक्टिव लोड लगे होने के कारण इसका परिणामी पावर फैक्टर (Power Factor in Hindi) लेगिंग ही होगा। क्योंकि इंडक्टर का पावर फैक्टर 90 डिग्री लेगिंग होता है। आप चित्र में फेजर डायग्राम को देख सकते हैं।


आप देख सकते हैं हमारा परिणामी धारा I’ , φ कोण से लैग कर रही है। अतः पावर फैक्टर लेगिंग होगा। जो कि हमारे बिजली की खपत को बढ़ा रहा है। अतः अब हमें इसको सुधारने के लिए लोड के समानांतर में कैपसीटर लगा देंगे। जो कि आप चित्र में देख सकते हैं।

अब जब यह कैप सीटर लगाएंगे तो कैप सीटर का पावर फैक्टर (Power Factor in Hindi) लीडिंग होता है। अर्थात प्योर कैपसिटर के स्थिति में धारा वोल्टेज से 90 डिग्री लीड करती है।

अतः इसका फेजर डायग्राम नीचे दिखाए गए चित्र की भांति होगा।

अब चुकी ICका फेजर डायग्राम IL के फेजर डायग्राम के बिल्कुल विपरीत में होगा तो फेजर डायग्राम के नियमानुसार IC का फेजर डायग्राम IL के फेजर डायग्राम को उतनी ही मात्रा में निरस्त करेगा, जितनी मात्रा में IC का फेजर डायग्राम था। अतः IL का परिणामी फेजर थोड़ा छोटा हो जाएगा। जोकि IL” से प्रदर्शित किया गया है।
आप देख सकते हैं कि जब IL फेजर परिणामी धारा I’ बना रहा था तो इस स्थिति में वोल्टेज से φ कोण बना रहा था। लेकिन जब कैपेसिटर लगाया गया तो हमारा परिणामी धारा खिसकर I” हो गया। तथा अब यह परिणामी धारा (I”) वोल्टेज से φ’ कोण बनाने लगा।
चुकी हम जानते हैं की पावर फैक्टर में cos φ = 0 हो तो पावर फैक्टर सबसे अच्छा यानी की यूनिटी होता है।
अतः जब हम कैपेसिटर लगाते है। तो हमारा φ मान घटता है। यहां पर φ > φ’ है। अतः यहां पर लेगिंग पावर फैक्टर में सुधार हुआ है। क्योंकि कोण का मान जीरो की ओर अग्रसर है।
अतः इस प्रकार हम कैपेसिटर को लगाकर अपने घर की पावर फैक्टर (Power Factor in Hindi) को आसानी के साथ सुधार सकते है। और अपनी घर की बिजिली बिल को किफायती बना सकते हैं।
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कैपेसिटर रिएक्टिव पावर पैदा करता है। :-
अगर हम दूसरे प्रकार से समझे तो हमने पहले ही पढ़ा है कि इंडक्टिव पावर में दो प्रकार का पावर खर्च होता है। पहला रियल पावर या वर्किंग पावर तथा दूसरा रिएक्टिव पावर।
उपर्युक्त लेख से यह स्पष्ट होता है कि यह रिएक्टिव पावर ही वह पावर है जो लोड को लेगिंग बनाता है। अतः पावर फैक्टर (Power Factor in Hindi) सुधारने के लिए हम जो कैपसीटर लगाते हैं, उसका बेसिक काम ही यही होता है कि वह इंडक्टिव लोड को रिएक्टिव पावर प्रदान करता है। जिससे पावर फैक्टर सुधर जाता है।
अतः अब मान लीजिए कि पावर ट्रायंगल में जो कि चित्र में दिख रहा है एक घर लोड में रियल पावर 100kW खपत होता है। तथा उसी लोड में 100 kVAR का रिएक्टिव पावर खपत होता है। तो इसका पावर ट्राइंगल आप चित्र के अनुसार होगा।

इसमें चित्र जब हम पैथागोरस का प्रमेय लगाएंगे तो kVA का मान लगभग 142 होगा। अब हमें इससे पता चलता है कि हम वास्तव में तो 100 kW बिजली का उपयोग करते हैं, लेकिन रिएक्टिव पावर के कारण हमारा आभासी पावर 142 kVA का होता है। अतः सप्लाई में से हमारा 142 kVA का बिजली की खपत होता है।
अतः अब इसको सुधारने के लिए मान लेते हैं कि एक संधारित्र (Capacitor) लगाते हैं। जो 70 kVAR का रिएक्टिव पावर पैदा करता है। जो कि उस लोड के समांतर में लगा दिया जाता है।
जब हम इसको लगाते हैं तो यह मेन सप्लाई से पावर लेकर उसे 70 kVAR का रिएक्टिव पावर पैदा करता है तथा उस इंडक्टिव लोड को दे देता है। जिसके परिणाम स्वरूप जो पहले हमारा 100 kVAR का पावर खर्च था वह घटकर 30 kVAR हो जाता है।

जैसे को पहले का पावर फैक्टर
PF = 100 / 142 = 70 % था।
लेकिन जब कैपेसिटर जोड़ा गया तो
PF = 100 / 105 = 95% हो गया।