परिचय:
दोस्तों, लगभग हम सभी के घर फ्रिज तो होता है। अगर नहीं भी है तो अपने फ्रिज को तो देखा ही होगा। फ्रिज का काम उसमे रखे वस्तुओं को ठंडा करने का है। इसे हम आपने घरों में खाने की वस्तुएं रखने के लिए इस्तेमाल करते है। आज इस पोस्ट के जरिए हम ये देखेंगे की ये फ्रिज या रेफ्रिजरेटर काम कैसे करता है। और ये फ्रिज के मुख्य मुख्य पार्ट क्या है? (parts of fridge or refrigerator in Hindi) इसको भी हम समझेंगे।
फ्रिज क्या है (fridge or refrigerator in Hindi):
फ्रिज या रेफ्रिजरेटर एक ऐसा डिवाइस या उपकरण है जिसका इस्तेमाल हम घरों में ऑफिस में या कॉमरीशियल स्टार पर वस्तुओं को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं। बहुत सारी कच्ची वस्तुएं या ऐसी वस्तुएं होती है जो ज्यादा गर्म वातावरण में जल्दी खराब होने के चांसेस रहते है। इसके लिए हमे एक ठंडा वातावरण को जरूरत होती है। अतः इस स्थिति में हम रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल करते हैं। यह refrigerator वस्तुओं को ठंडा रखने का काम करता हैं। घरों में हम फ्रिज का इस्तेमाल खाने की वस्तुएं, जैसे सब्जी, पनीर, दूध, मटन, चिकन आदि रखने के लिए करते हैं। अगर कमर्शियल स्टार पर फ्रिज की बात करते तो बहुत सारे प्रोडक्ट ऐसे होते है जो कम तापमान पर ज्यादा दिन तक रख सकते है। इसीलिए हम कमर्शियल स्टार पर ऐसे वस्तुओं को रखने के लिए हम फ्रिज का इस्तेमाल करते हैं।

फ्रिज या रेफ्रिजरेटर के भाग (parts of fridge or refrigerator in Hindi):
रेफ्रिजरेटर चुकी एक ऐसा डिवाइस है, जो हमारे वातावरण का जो टेंपरेचर है उससे कम टेंपरेचर उत्पन्न करने का काम करता है। अतः हमें यह जानना जरूरी है या हमारे दिमाग में यह सवाल जरूर आता है कि रेफ्रिजरेटर में ऐसी क्या उपकरण लगे हैं जो उसके अंदर टेंपरेचर को बहुत ही कम कर देता है। इस स्थिति को हम समझने के लिए सबसे पहले हम यह देखेंगे की इसमें कौन कौन सा महत्वपूर्ण पार्ट लगा है।
- कंप्रेशर (compressor)
- रिफ्रिजरेंट गैस (refrigerant)
- कंडेंसर (condenser)
- कैपिलरी ट्यूब (capillary tube)
- स्ट्रेनर (strainer)
- इवोपरेटर (evaporator)
- एक्युमुलेटर (accumulator)
- थर्मोस्टेट (thermostat)
इन सभी 8 प्वाइंट में हम रेफ्रिजरेटर की पूरी काम करने की प्रक्रिया को समझ सकते हैं। लेकिन सबसे पहले ऊपर के सभी पार्ट को एक एक करके वर्किंग प्रिंसिपल समझ लेते हैं।
कंप्रेशर मोटर:
कंप्रेशर मोटर का काम रेफ्रिजरेंट गैस को पंप करना होता है। रेफ्रिजरेटर का सबसे अहम या मुख्य भाग होता है। यही मोटर फ्रिज के पावर रेटिंग के बराबर का पावर लेता है।

रिफ्रिजरेंट :
यह एक प्रकार का गैस होता है जिसको हम कंप्रेशर मोटर के द्वारा अलग चेंबर में जैसे कंडेनसर एवं एवोपरोटर, कैपिलरी ट्यूब , आदि में भेजते रहते हैं। और यह गैस से अलग-अलग चेंबर में अपने स्थिति को बदलता रहता है जिससे हमारा फ्रीज कार्य करता हैं। यहां पर स्थिति को बदलने का मतलब यह है कि यह अलग-अलग चेंबर में कभी गैस अवस्था में रहता है तो कभी लिक्विड में रहता है। Refrigerant gas के रूप में हम सबसे ज्यादा अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते हैं
कंडेंसर:
जब कंप्रेसर से गैस निकलता है तो वह लगभग 90 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है। यानी कि उसका टेंपरेचर बहुत ज्यादा होता है। उसके टेंपरेचर को यानी कि गैस के टेंपरेचर को कम करने के लिए हम कंडेनसर का इस्तेमाल करते हैं या कंडेनसर हमारे फ्रिज के पीछे एक पाइप नुमा घुमावदार पाइप अनुमान लगा होता है जिसमें हम कंप्रेसर के थ्रू गैस को इसमें भेजते हैं या कंडेनसर गैस के टेंपरेचर को अवशोषित करके ठंडा कर देता है। कंडेनसर से निकले हुए गैस का टेंपरेचर लगभग पहले के टेंपरेचर से आधा हो जाता है।

Capillary tube:
यह एक कॉपर का पतली नालीनुमा ट्यूब होती है जो स्प्रिंग के रूप में बैंड होती है। इसकी लंबाई 4-5 मीटर तक होती है। यही ट्यूब ही गैस को ठंडा करने का काम करती है।

Strainer:
Capillary tube से निकला हुआ ठंडा रिफ्रिजरेंट पहले स्ट्रैनर में जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है। ताकि एवोपरेटर में गैस के साथ कुछ और न जाए। यानी की स्ट्रेनर गैस को फिल्टर करके evoparator में भेजता है।
एवोपरेटर (evaporator) :
इवोपैरेटर ही फ्रिज का एक ऐसा भाग है जो फ्रिज के अंदर के एरिया को ठंडा करने का काम करता है। कैपिलरी ट्यूब से एक निकला हुआ बहुत ही ठंडा गैस evaporator में जाता है। और evaporator को भी ठंडा करता है। इवोपरेटर ही फ्रिज के अंदर लगा होता है। बाकी चीजें बाहर लगी होती हैं।
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एक्युमुलेटर:
जब ठंडी गैस evaporator से होते हुए फिर कंप्रेशर मोटर तक जाती है तो ये गैस पूरी तरह से गैस के रूप में परिवर्तित नहीं हुई रहती है। अतः ऐसे में जब हम कंप्रेशर से लिक्विड रिफ्रिजरेंट को कंप्रेस करेंगे तो हमरा कंप्रेशर मोटर खराब हो जायेगा। अतः इस रिफ्रिजरेंट को पूरी तरह से गैस के रूप में बदलने के लिए सबसे पहले इसे एवोप्रारेटर से एक्युमुलेटर चेंबर में प्रवेश कराते हैं। जिसमें ये लिक्विड पूरी तरह से गैसीय फॉर्म में परिवर्तित हो जाती है। इसके बाद से फिर से इसी गैस को कंप्रेशर, कंप्रेस करता है। और यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। इसमें गैस का कोई खर्च नही होता है। इसमें गैस को सिर्फ अलग अलग स्थिति में परिवर्तित किया जाता है। अतः इसमें अगर किसी उपकरण से लीकेज ना होती तो यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।

थर्मोस्टेट :
थर्मोस्टेट एक ऐसा उपकरण है जो फ्रिज में कूलिंग की स्थिति को कंट्रोल करता है। आपने देखा होगा की फ्रिज में एक रेगुलेटर होता है जिसे घूमकर हम फ्रिज की कूलिंग को कम या ज्यादा करते है। इस रेगुलेटर में लगा यंत्र ही थर्मोस्टेट होता है। जब हमे फ्रिज को कूलिंग बढ़ानी होती है तो हम रेगुलेटर को ज्यादा cooling की तरफ घूमते है। जिससे हमारे फ्रिज की कंप्रेशर मोटर को कंप्रेस करने को क्षमता को बढ़ा देते हैं। जिससे कूलिंग ज्यादा होने लगती है।
रेफ्रिजरेटर कैसे काम करता है? (How a refrigerator works?):
अगर हम एक रेफ्रिजरेटर की सबसे मुख्य भाग का नाम कहे तो वह होता है हमारा कंप्रेशर मोटर। कंप्रेशर मोटर की फ्रीज में जितनी पावर रेटिंग फ्रिज का होता है वह सारे पावर रेटिंग कंप्रेशर मोटर ही खर्च करता है। कंप्रेशर मोटर का काम रेफ्रिजरेंट जो कि एक गैस होता है उसको पंप करना होता है।
अतः अब चलिए फ्रिज के कार्य विधि को समझते हैं।
सबसे पहले कंप्रेशर मोटर रिफ्रिजरेंट गैस को कंप्रेस करके कंडेंसर में भेजता है। जिस समय यह गैस कंप्रेस को जाती है उस टाइम गैस का तापमान लगभग बहुत ज्यादा यानी की 90°C तक होता है।
अतः इस गैस को ठंडा करने के लिए हम कंडेनसर में भेजते है। इसके बाद जब कंडेसर में ये गैस जाता है तो यह गैस एक घुमावदार मेटल एक पाइप के बने स्ट्रक्चर से होकर गुजरता है। जिससे यह हाई तापमान वाली गैस ठंडी हो जाती है। और जब यह कंडेंसर से यह गैस बाहर निकलती है तो इसका तापमान घटकर लगभग 46°C हो गया होता है। और यह गैसीय रूप में होता है।
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अब इस गैस को जब कैपिलरी ट्यूब से गुजारते हैं , तो चुकी कैपिलरी ट्यूब का डायमीटर बहुत कम और लंबाई बहुत ज्यादा होता है। अतः गैस जब इससे गुजरता है तो गैस का प्रेशर कैपिलरी ट्यूब के लंबाई के समानुपात में घटेगा और इसके डायमीटर के व्युतक्रम के अनुपात में घटेगा। यानी की कैपिलरी ट्यूब का डायमीटर कम भी है और लंबाई भी अधिक होने के कारण गैस का प्रेशर बहुत ज्यादा ड्रॉप हो जायेगा। और ड्रॉप लगभग 0.6 बार तक पहुंच जाएगा। जब प्रेशर ड्रॉप बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो गैस का टेंपरेचर भी बहुत ज्यादा कम लगभग -16°C तक पहुंच जाएगा। यानी की जब कैपिलरी ट्यूब से गैस बाहर निकलता है तो उसका टेंपरेचर -10°C से -15°C तक होता है।
अब चुकी गैस का temprture बहुत कम होने के कारण गैस का लगभग 75% भाग लिक्विड में बदल जाएगा।
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अब यह लिक्विड फॉर्म में रेफ्रिजरेंट पहले स्ट्रेनर तक पहुंचता है। उसके बाद स्ट्रेनर से यह रिफ्रिजरेंट फिल्टर होकर फिर evoparator में जाता है। अब एवोपैरेटर ही फ्रिज के अंदर वाले भाग में लगा होता है। तो यह evoprator जब बहुत ज्यादा ठंडा होता है तो ये आस पास के एरिया को भी ठंडा करता है। यानी कि evoprator आस पास के गर्म वातावरण के गर्मी को अवशोषित कर लेता है और अपनी कोल्डनेस दे देता है। जिससे फ्रिज का वो क्षेत्र एक दम ठंडा हो जाता है।
आपने किसी भी फ्रिज में देखा होगा की फ्रिज के ऊपर के साइड में या कही एक पार्टिकुलर जगह पर फ्रिजर होता है। जहां पर टेंपरेचर ज्यादा डाउन रहता है। यहां पर हम बर्फ बनाने के लिए चीजे रखते है। या ज्यादा दिन तक रखने वाले वस्तुएं रखते हैं। वही फ्रीजर वाला भाग पर ही एवोपरेटर लगा होता है। बाकी के फ्रिज वाले एरिया में कूलिंग फैन लगे होते है। जो पूरी फ्रिज के कंपार्टमेंट को ठंडा करते रहते हैं।