Instrument transformer in hindi | इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर क्या है?

परिचय:-

अगर हम इलेक्ट्रिकल के क्षेत्र में स्विच गियर और प्रोटेक्शन के बारे में पढ़ें तो हम इंट्रूमेंट ट्रांसफार्मर के बारे में जरूर पढ़ेंगे। आपने इस instrument transformer के अंतर्गत करंट ट्रांसफार्मर और पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का नाम तो सुना ही होगा। इसे हम संक्षिप्त में CT और PT कहते हैं। आज के इस पोस्ट में हम करंट ट्रांसफार्मर और पोटेंशियल ट्रांसफार्मर दोनो के बारे में पढ़ेंगे। तथा इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है और कहा किया जाता है। इसके बारे में भी डिस्कस करेंगे। और इसे इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर ही क्यों किया जाता है। इसको भी समझेंगे।

Instrument transformer in Hindi:-

वे ट्रांसफार्मर जो विद्युत राशियों जैसे करंट, और वोल्टेज के उच्च लेवल के मानों को मापने के लिए उपयोग किया जाता है उसे इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर (instrument transformer in Hindi) कहते हैं। इस इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर के अंतर्गत दो प्रकार के ट्रांसफार्मर आते हैं।

  1. करेंट ट्रांसफार्मर (Current transformer or CT)
  2. पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential transformer or PT)

Current transformer in Hindi:-

जैसा की हम पढ़ ही चुके हैं कि करंट ट्रांसफार्मर एक इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर है। जो कि ट्रांसमिशन लाइन में धारा को मापने में सहायक होता है। चुकी ट्रांसमिशन लाइन में एमीटर को डायरेक्ट लाइन से नही जोड़ते है क्युकी लाइन का वोल्टेज बहुत ही हाई होता है। अतः एमीटर हम करंट ट्रांसफार्मर के जरिए जोड़ते है। अतः इससे अमीटर को किसी भी प्रकार का नुकसान नही होता है।

ट्रांसमिशन लाइन में करंट ट्रांसफार्मर को लाइन के सीरीज में लगाया जाता है। ताकि ट्रांसमिशन लाइन में बहने वाली कुल धारा का मापन हो सके। क्योंकि सीरीज में जोड़ने से ट्रांसमिशन लाइन की कुल धारा करेंट ट्रांसफार्मर से होकर बहती है।

इसके साथ ही करंट ट्रांसफार्मर बेसिकली एक ऐसा ट्रांसफार्मर है। जो की विभिन्न प्रकार के उपकरण जैसे एमीटर और रिले को हाई ट्रांसमिशन वोल्टेज से अलग करता है। सभी इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर बेसिक रूप से यही काम होता है।

करेंट ट्रांसफार्मर को ट्रांसमिशन लाइन में सर्किट ब्रेकर के पहले ही लगाते हैं। अगर आप कभी भी किसी भी सबस्टेशन पर जाते हैं तो आपको करंट ट्रांसफार्मर लाइटिंग अरेस्टर के तुरंत बाद और सर्किट ब्रेकर के पहले लगाया जाता है।

करेंट ट्रांसफार्मर की संरचना (Structure of current transformer in Hindi):-

बेसिकली करंट ट्रांसफार्मर की संरचना में नीचे का बेस curvature structure का होता है। क्योंकि इसका कोर वृत्ताकार होता है। इसीलिए वह curvature वाली संरचना में वह कोर आसानी से बैठ जाता है। अगर हम इसके कोर की बात करे तो यह रिंग टाइप का होता है। तथा यह meu metal या permalytic का होता है। यह कोर एक पट्टी नुमा लैमिनेटेड पत्ती को एक दूसरे के ऊपर लपेटकर बनाया जाता है।

करेंट ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग सिर्फ एक टर्न की होती है। तथा इसका सेकेंडरी वाइंडिंग अधिक टर्न की होती है। करेंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में एक मोटे रसीनुमा कॉपर इस्तेमाल करते हैं। इसे मोटा रस्सीनुमा इसीलिए लेते हैं। क्योंकि ट्रांसमिशन लाइन का पूरा करंट यह तार झेलता है। क्योंकि यह ट्रांसमिशन लाइन के सीरीज में लगा होता है।

हमने प्रैक्टिकली देखा है कि CT का प्राइमरी वाइंडिंग लगभग 90% एक टर्न की होती है। लेकिन कभी कभी किसी CT में 2 या 3 टर्न की भी पाई जाती है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि जब टर्न अधिक होता है तो धारा सहने की क्षमता अधिक होती है।

अब हम बात करते हैं करेंट ट्रांसफार्मर के कोर की तो करेंट ट्रांसफार्मर में कोर की संख्या भिन्न भिन्न होती है। करेंट ट्रांसफार्मर में कोर की संख्या ट्रांसमिशन वोल्टेज पर निर्भर करता है। जैसे –

  • 33 kv के लाइन में लगी करंट ट्रांसफार्मर 2 कोर की होती है।
  • 132 kv के लाइन में लगी CT 3 कोर की होती है।
  • 220 kv के लाइन में लगी करंट ट्रांसफार्मर 5 कोर की होती है।
  • 400kv के ट्रांसमिशन लाइन में लगी CT, 5 या 7 या 8 कोर की होती है।

33 केवी के लाइन में CT 2 कोर की क्यों लगाई जाती है?:-

पहली बात तो ये की पूरे भारत में 33 kv के लाइन में कोई ऐसा CT नही मिलेगा जो या जिसका रेटिंग 800/1 की हो। उसके नीचे के रेटिंग 100/1, 200/1 या 400/1 की CT मिल जायेगी। नीचे दिए गए चित्र में आपको एक तीन कोर वाली CT को दिखाया गया है। तथा साथ में उनके टर्मिनलों को भी दिखाया गया है।

Instrument transformer in hindi

सबसे पहले हम इनके टर्मिनलों के संकेतों के आधार पर समझते हैं। इसमें आपको 1S1, 1S2, 2S1, 2S2, 3S1, 3S2
दिखाया गया है। इसमें 1S1 में 1 मतलब है पहला कोर S1 का मतलब है सेकेंडरी वाइंडिंग का पहला टर्मिनल।

इसी प्रकार 1S2 का मतलब है पहले कोर के सेकेंडरी वाइंडिंग पा दूसरा टर्मिनल है। इसे सब संकेत आपको CT पर देखने को मिल जायेगा।
और साथ में CT के प्राइमरी वाइंडिंग के दोनो टर्मिनल P1 तथा P2 से दिखाते हैं।

अब हम आगे समझते है। आपको नीचे के चित्र में एक करंट ट्रांसफार्मर के पहले कोर के सेकेंडरी वाइंडिंग के 1S1 तथा 1S2 टर्मिनल को दिखा गया हैं।

Instrument transformer in hindi

इसमें लाइन के तीनो फेस को स्टार में जोड़ कर चित्रानुसार एमीटर से जोड़ा गया है। और अगर हम पैनल में देखे तो पैनल में अमीटर के नीचे एक सिलेक्टर स्विच लगा होता है। जब हम स्लेक्टर स्विच को R पर लाते हैं तो अमीटर (R-N), R फेज और न्यूट्रल के बीच के धारा को बताता है। यदि हम इसी प्रकार Y और B फेस पर सिलेक्टर स्विच को ले जाए तो एमीटर क्रमशः Y-N तथा B-N के बीच का करेंट बताता है।

इसी प्रकार हम स्लैक्टर स्विच के जरिए अलग अलग फेस के धारा का मापन कर लेते है। अब चुकी करंट ट्रांसफार्मर दो कोर की है। जिसमे से हम एक को धारा मापन में प्रयोग कर लेते है। इसके बाद अभी भी दूसरा कोर बचा है।

करेंट ट्रांसफार्मर के दूसरे कोर का उपयोग:-

अब हम इस CT का उपयोग प्रोटेक्शन रिले लगाने के लिए करते है। अब चलिए मान लेते है की CT की रेटिंग 200/1 की है। अतः जब CT में 200 एम्पियर की करंट बहेगी तो रिले में 1 एम्पियर की करंट बहेगी। तथा यह 200 एम्पियर तक रिले trip नही करेगी। अर्थात रिले को 1 एम्पियर वाले टैपिंग पर हमने सेट कर दिया है। अगर रिले में 1 एम्पियर से ज्यादा करेंट गई तो रिले सर्किट ब्रेकर को trip करा देगा। चित्रानुसार तीनों रिले के b टर्मिनल को शॉर्ट करा कर हम स्टार कनेक्शन बना लेते हैं।

Instrument transformer in hindi

अगर हम शॉर्ट नही कराते तो CT का सेकेंडरी ओपन हो जाता है। और CT डैमेज कर जाती। अतः CT सेकेंडरी का दूसरा कोर में ओवर करंट रिले लगाकर फॉल्ट प्रोटेक्शन देते है।

अब माना की फॉल्ट आया है। जो कि आपको चित्र में दिख रहा है। माना यह लाइन बस बार से आगे जा रही है ।


चुकी लाइन बस बार से आगे जा रही है तो आगे कही भी फॉल्ट होने से बचाएगा। अतः जिस ओर फॉल्ट होगी उसी की तरफ स्टार बनेगा। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। माना यदि निर्मल कंडीशन में लाइन चल रही है। तो रिले में एक एम्पियर करेंट जा रही है। अतः प्रत्येक फेस का फेजर सम IR + IY + IB = 0 होगा।

यदि ओवर करंट रिले की सेटिंग 1 एम्पियर करेंगे तो अर्थ फॉल्ट रिले की सेटिंग 1 एम्पियर का 20% – 40% पर करते हैं। जब तक एक फेस ग्राउंड नही हुआ था तो तीनों फेस में क्रमशः IR, IY तथा IB करंट बह रही है। अतः Kirchaoff करंट law के अनुसार तीनों का फेस सम जीरो होगा।

अतः अर्थ फॉल्ट में रिले में तीनों का फेजर सम जीरो होने के कारण रिले से जीरो एम्पियर करेंट बहेगी। अतः अर्थ फॉल्ट रिले ऑपरेट नहीं करेगी।

अब माना एक कंडक्टर टूट कर गिर गया। माना की उस स्थिति में फॉल्ट करंट 1000 एम्पियर होगी। और यह 1000 एम्पियर R phase में होगी। अतः चुकी CT 200 /1  की है। अतः जब CT 200 एम्पियर को 1 एम्पियर में बनाता है तो, 1000 एम्पियर को 5 एम्पियर में बदलेगा। अतः इस हिसाब से स्लेहटे है तो R फेस में 5 एम्पियर, Y phase में 1 एम्पियर तथा B phase में 1 एम्पियर करंट फ्लो करेगा। अतः इस स्थिति में तीनों फेस का फेजर सम जीरो नही होगा।

चुकी पहले R phase में नॉर्मली 1 एम्पियर की करंट बह रही थी। लेकिन अब इसमें 5 एम्पियर की करंट फ्लो कर रही है। अर्थात ओवर करंट का रिले सेटिंग 1 एम्पियर था लेकिन अब 5 एम्पियर जा रही है। अतः इस स्थिति में PSM (plug setting multiplier) 5 गुना है। यहां PSM का मतलब यह है कि ओवर करंट के सेट किए गए वैल्यू का जितना गुना करेंट फ्लो करेगा वही PSM कहलाता है।

अतः रिले सेट करेंट से 5 गुना करेंट पाते ही ऑपरेट करेगी। और सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेजेगी। और सर्किट ब्रेकर फॉल्ट सेक्शन को अलग कर देगा।

अब चुकी अगर हम अर्थ फॉल्ट की बात करें तो चुकी हम जानते है कि फेजर सम फॉल्ट के समय जीरो नही है, तो कुछ न कुछ करंट बहेगी। जो अर्थ फॉल्ट में जाएगी। अगर माना वह करंट 2 एम्पियर है। तो चुकी हम रिले (अर्थ फॉल्ट) की सेटिंग 1 amp का 20% अर्थात 0.2 एम्पियर रखें है। और अर्थ फॉल्ट रिले में 2 एम्पियर करेंट जा रही है। जो रिले के करंट सेटिंग दस गुना अधिक है। अतः ओवर करंट रिले का PSM पांच गुना या 5 होगा।

जबकि अर्थ फॉल्ट रिले का PSM 10 गुना यानी कि 10 है। अतः अर्थ फॉल्ट रिले का PSM अधिक होने के कारण अर्थ फॉल्ट रिले ओवर करंट रिले से पहले ऑपरेट होगा। क्युकी ऑपरेटिंग टाइम PSM के इनवर्सली प्रपोजनल होता है।

जब हम CT के टर्मिनल में स्टार बनाने में मिस्टेक करते है तो:-

अगर हम कनेक्शन करते समय गलती से CT के टर्मिनलों की पोलर्टी चेंज कर देते हैं। तो इस स्थिति में IR + IY + IB = 0 नही होगा। अर्थात फेजर सम का मान जीरो नही होगा। क्योंकि लेंज लॉ के नियमानुसार जब लाइन में करेंट जाती है तो यह विपरीत के CT के coil में करेंट जाती है। जिससे दो CT में करेंट 2S1 से होकर जायेगी। इसका चित्र आपको नीचे दिखा रहा होगा।

अतः IB का फेजर सम बिना किसी फॉल्ट का करेंट जीरो न होकर कुछ न कुछ अर्थ फॉल्ट रिले में बहा देगी। क्योंकि दो R और Y का जो करंट आएगा। उस B का करेंट जुड़कर के 1.5 या 2 एम्पियर (लगभग) तक बना देगी। जब अर्थ फॉल्ट में 1.5 या 2 एम्पियर बहेगी। और रिले सेटिंग 0.2 एम्पियर सेटिंग किया गया है तो अर्थ फॉल्ट रिले बिना किसी फॉल्ट का सर्किट ब्रेकर को ऑपरेट कर ट्रिप करा देगी। अतः इस स्थिति में हमे उस टर्मिनल को बदलना पड़ेगा। क्योंकि लाइन ऑपरेट नहीं होगा।

नोट:-

  • 132 केवी तक सर्किट ब्रेकर के तीनों पोल एक साथ लगते हैं तथा एक साथ खुलते हैं। तथा तीनों सर्किट ब्रेकर का ट्रिपिंग coil एक ही होता है। लेकिन एक ट्रिपिंग coil  स्टैंडबाई में रखते हैं ताकि पहला जलने पर दूसरा लगा दिया जाए। अतः कूल मिलाकर दो ट्रिपिंग coil होती है।
  • 220kv के तीनो पोल के लिए सर्किट ब्रेकर अलग-अलग खुलते हैं। अतः इसमें यह हो सकता है कि दो सर्किट ब्रेकर खुल जाए तथा एक सर्किट ब्रेकर ना खुले। तथा इसमें तीन ट्रिपिंग क्वायल होती है। जो कि हर पोल के लिए अलग-अलग कमांड जाता है। अतः तीनों पोल एक साथ नहीं खुलते हैं। अतः रिले में एक व्यवस्था की जाती है। जिसे pole discrepancy  कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि अगर सर्किट ब्रेकर लगाए तो 2 को कमांड गया तीसरे को नहीं आ गया तो तीनों पोल खुल जाएंगे। इसमें समय सेटिंग 5 सेकंड का होता है। मतलब दो पोल लगा तथा एक पोल नहीं लगेगा तो हैवी स्पार्किंग होगी और इस के उल्टा जब ट्रिपिंग होती है तो दो खुलेगा एक लगा रहेगा तो फाल्ट करंट 1 फेस में बहेगी या बहती रहेगी। जो की एक हेल्थी सर्किट के लिए अच्छा नहीं है।
  • अगर तीनों फेस R, Y, B एक दूसरे से शॉर्ट कर जाएगा तो भी बैलेंस करंट आएगी अर्थात जो भी फाल्ट करंट की मात्रा होगी वह तीनों पेज में बराबर मात्रा में रहेगा जिससे कि हमारे सर्किट का फेजर सम होगा और इस स्थिति में अर्थ फॉल्ट रिले इस फाल्ट करंट को डिटेक्ट नहीं कर पाएगी। और अर्थ फाल्ट रिले ऑपरेट नहीं करेगी। अतः इस स्थिति में सर्किट में लगे ओवरकरेंट रिले, इस फाल्ट करंट को सेंस करेगी और ओवरकरेंट रिले जो कि तीनों फेस में लगा है वह ऑपरेट करेगी और सर्किट ब्रेकर को ट्रिप कराएगी।
  • सर्किट की सुरक्षा के लिए सबसे बेस्ट प्रोटेक्शन स्कीम 2 ओवर करंट रिले और एक अर्थ फॉल्ट रिले है। क्योंकि यह हमारे सर्किट को पूरी तरह से सुरक्षा देने के साथ ही इकनॉमिक भी होता है।
  • 33 kv के लाइन के पैनल में रिले की इस प्रकार से होती है को आप उसे आसानी से पहचान सकते है। पैनल में अगर आप देखेंगे तो तीन रिले लगा होगा। जिसमे बीच वाली रिले अर्थ फॉल्ट रिले होगी। और बाकी दोनों साइड के रिले ओवर करंट रिले होगी। आप इससे भी पहचान सकते है को जिस रिले की करंट सेटिंग सबसे कम होगी वही अर्थ फॉल्ट रिले होगी। और बाकी के ओवर करंट रिले होगी।

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