इंडक्शन मोटर क्या है:-
दोस्तों आज हम बात करने वाले है कि इंडक्शन मोटर क्या है। और ये किस सिद्धांत पर काम करता है। इस पोस्ट में हम आपको 3-phase इंडक्शन मोटर के बारे में बताएंगे। दोस्तों इंडक्शन मोटर की प्रयोग कि बात करे तो यह सबसे ज्यादा बड़े बड़े इंडस्ट्री में प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इस मोटर की डिजाइन बहुत ही सिंपल, और robust संरचना होती है। और ये कम प्राइज के साथ साथ इसे किसी भी प्रकार के वातावरण में प्रयोग किया जा सकता है। इसमें एक और खास बात यह कि इसमें बहुत कम मेंटेनेंस की जरूरत पड़ती है। इसीलिए ये इंडस्ट्री में ज्यादा प्रयोग किया जाता है।
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इंडक्शन मोटर को वहां पर प्रयोग किया जाता है जहां पर नियत गति (constant speed) की जरूरत होती है। क्योंकि यह नो लोड से फूल लोड तक लगभग समान गति से घूमती है। इसमें स्पीड को change करना बहुत ही कठिन होता है। इसमें स्पीड को change करने के लिए हमे फ्रीक्वेंसी को बदलना पड़ेगा जो कि बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। अतः यह मोटर वहीं पर प्रयोग किया जाता है जहां स्पीड को constant रखने की जरूरत होती है।
3-φ इंडक्शन मोटर:-
सभी प्रकार के मोटर की तरह इस मोटर में भी एक स्टेटर होता है। और एक रोटर होता है। इस को पॉवर सप्लाई stator में दिया जाता है। 3-φ इंडक्शन मोटर में 3-φ वाइंडिंग को स्टैटर में किया जाता है जिसे stator वाइंडिंग कहते हैं। अगर हम रोटर की बात करे तो रोटर लैमिनेटेड कोर का बना होता है। जिसमे स्लॉट्स कटे होते है और उस स्लॉट्स में कॉपर या एल्यूमिनियम के चालक बार (छड) लगे होते हैं। जो दोनों सिरों पर मोटी पत्ती से शॉर्ट सर्किट किए गए होते हैं। ये मोती उसी मेटल का बना होता है जिस मेटल का चालक बार लगा होता है। इस रोटर में शॉर्ट सर्किट वाइंडिंग होती है। इसमें जब stator को 3-φ सप्लाई दी जाती है। वाइंडिंग में एक वैद्युत चुंबकीय प्रेरण के कारण ऊर्जा उत्पन्न होती है जिसके कारण रोटर घूमता है। चुकी यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसलिए इसका नाम प्रेरण मोटर (induction motor) पड़ा। यह चुकी ट्रांसफार्मर की वर्किंग सिद्धांत पर कार्य करता है। इसलिए इसकी stator को प्राइमरी वाइंडिंग और रोटर को सेकंडरी वाइंडिंग मान सकते हैं।

नोट:- इंडक्शन मोटर की दक्षता लगभग 85% होती है। जबकि ट्रांसफार्मर की दक्षता लगभग 98% होती है। लेकिन इन दोनों में सिर्फ एक ही अंतर होता है। ट्रांसफार्मर एक स्थिर यंत्र है जबकि इंडक्शन मोटर एक रोटेटिंग यंत्र है।
इंडक्शन मोटर के लाभ:-
दोस्तों चुकी यह इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा प्रयोग में होने वाला मोटर है। तो इसके कुछ लाभ तो होंगे ही तो आइए जानते है कि इसके क्या क्या लाभ है।
- इसकी संरचना बहुत ही सरल और दृढ़ होती है।
- यह अपेक्षा कृत अन्य मोटरो से सस्ता होती है।
- इसके लिए बहुत कम मैंटेनेस की जरूरत पड़ती है।
- यह उच्च दक्षता वाली मशीन होती है।
- इस मोटर का अपेक्षाकृत पॉवर फैक्टर अच्छा होता है।
- इसमें खास बात यह है कि यह स्वयं चालित (self starting) होती है।
इंडक्शन मोटर की हानि:-
दोस्तों इसके कुछ हानि भी है जो निम्न है।
- यह मुख्य रूप से सिर्फ स्थिर या नियत गति वाले स्थानों पर ही उपयोग में लाया जा सकता है।
- इसकी starting बलाघुर्ण, d.c shunt motor की अपेक्षा कम होती है।
इंडक्शन मोटर की संरचना:-
इस मोटर की संरचना में इसके मुख्यत दो भाग होते हैं पहला stator और दूसरा रोटर। इसमें stator और रोटर दोनों एक airgap के द्वारा अलग रहते हैं। यह airgap लगभग 0.4 mm से लेकर 4mm तक हो सकती है। Stator और रोटर में airgap इस बात पर निर्भर करती है कि मोटर की पॉवर कितनी है।
इंडक्शन मोटर का stator:-
stator में एक स्टील का फ्रेम होता है जिसके अंदर की तरफ एक खोखली सिलिंडर के आकार में लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील का स्लॉट्स कटे होते हैं। इसे लैमिनेटेड बनाए जाते है ताकि मोटर में उत्पन्न हिस्टरेसिस और eddy current हानि को काम किया जा सके। लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील के कटे स्लॉट्स में ही 3-φ कॉपर वाइंडिंग लगाई जाती है। 3-φ stator वाइंडिंग में पोले कर निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि मोटर की स्पीड कितनी होनी चाइए। जैसे कि यदि हम stator में पोल कि संख्या बढ़ाएंगे। तो हमारा स्पीड घटेगा और यदि पोल की संख्या घटाएंगे तो स्पीड बढ़ेगा। इसमें 3-φ stator वाइंडिंग में पॉवर सप्लाई दिया जाता है तो stator में एक रोटेटिंग फील्ड उत्पन्न होता है। जो कि विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के कारण होता है।

इंडक्शन मोटर का रोटर:-
जैसे कि हम जानते है कि रोटर लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील का बना होता है। जिसमे स्लॉट्स कटे होते हैं। और इसी स्लॉट्स में कॉपर या एल्यूमिनियम के बार लगे होते हैं। तथा इन सब बार को दोनों सिरों से एक उसी मेटल की मोटी पत्ती से एक दूसरे से शॉर्ट कर दिया जाता है। इंडक्शन मोटर में दो प्रकार की रोटर होते हैं।
- Squirrel cage rotor
- Wound rotor

Squirrel cage rotor:-
इस प्रकार के रोटर उपर्युक्त बताए गए संरचना की तरह ही होती है। इसकी संरचना गिलहरी के पिजड़े की तरह होती है। इसीलिए इसे squirrel cage type rotor कहते हैं। Squirrel cage type rotor दो प्रकार के होते हैं।

- Double squirrel cage type rotor
- Single squirrel cage type rotor
Note:- Double squirrel cage type rotor का प्रयोग वाहा पर किया जाता है जहां ज्यादा बलाघूर्ण की आवश्यकता होती है। सिंगल squirrel cage rotor में अपेक्षा कृत कम बलाघुर्णं उत्पन्न होती है। Double squirrel cage type rotor में अंदर में लगा छोटा वाला केज का प्रतिरोध अधिक होता है बड़े वाले केज की अपेक्षा।
जिस इंडक्शन मोटर में squirrel cage rotor का इस्तेमाल किया जाता है। उसे squirrel cage induction motor कहतें है। अधिकतर इंडक्शन मोटर ऐसे ही प्रकार के होते हैं। क्योंकि यह सबसे ज्यादा रोबॉस्ट संरचना वाला मोटर होते है। जिसका उपयोग किसी भी प्रकार के वातावरण में किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकार के मोटर का starting बलाघूर्णं कम होता है। क्योंकि इसके रोटर के एक नियत या फिक्स कॉपर चालक बार लगाकर शॉर्ट सर्किट कर देते हैं। जिससे हम को बाहरी प्रतिरोध नहीं जोड़ सकते अतः इसका बलगुर्णं बढ़ा नहीं सकते हैं।
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Wound rotor:-

इस प्रकार का रोटर भी लैमिनेटेड कोर का बना होता है। लेकिन stator वाइंडिंग की तरह ही इसमें रोटर वाइंडिंग होती है। जो 3-φ होती है। इस वाइंडिंग का तीनों फेस शाफ़्ट पर लगे स्लिप रिंग से कनेक्टेड रहती है। और यह स्लिप रिंग रिहोस्टेट से कनेक्टेड रहतीं है। इस स्लिप रिंग के द्वारा हम रोटर वाइंडिंग का प्रतिरोध बढ़ा या घटा कर मोटर के starting बलघूर्ण को नियंत्रित कर सकते हैं।

इंडक्शन मोटर स्टार्ट कैसे होता है:-
दोस्तों जैसा की हम सब जान ही चुके हैं कि इंडक्शन मोटर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
दोस्तों जब हम लोग इंडक्शन मोटर को 3-φ सप्लाई दी जाती है, तो stator में एक रोटेटिंग फील्ड उत्पन्न होता है। जो कि सिंक्रोनस स्पीड (Ns) से घूमता है। चुकी stator में ही रोटर लगा होता है। जिससे यह रोटेटिंग फील्ड इस रोटर को भी सिंक्रोनस स्पीड से कटता है। जब रोटेटिंग फील्ड के flux rotor के कंडक्टर को Ns स्पीड से कटता है तो उस रोटर में एक emf पैदा होता है। चुकी रोटर का कंडक्टर शॉर्ट सर्किट होते हैं। तो रोटर के चालकों में एक धारा उत्पन्न होती है। अब चुकी लेंज़ लॉ के अनुसार उत्पन्न हुई धारा उसी कारण का विरोध करेगी जिससे यह उत्पन्न हुई है। अब चुकी यह रोटेटिंग मैगनेटिक फील्ड के कारण उत्पन्न हुई है तो यह stator के रोटेटिंग मैगनेटिक फील्ड का विरोध करेगी। अतः रोटर में उतपन्न करंट उसका विरोध करने के लिए रोटर को उसी दिशा में घुमाएगी जिस दिशा में stator का फील्ड रोटेट कर रहा है। रोटर के उसी दिशा में घूमने से stator फील्ड flux को रोटर द्वारा कटने की दर कम हो जाएगी और रोटर का emf कम हो जाएगा। जिसे रोटर में करंट कम हो जाएगा। इस प्रकार से रोटर घूमना शुरू कर देती है।
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