दोस्तों, इलेक्ट्रिक पावर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए हम मुख्यत दो तरीका अपनाते है। पहला overhead line के द्वारा तथा दूसरा अंडरग्राउंड केबल के द्वारा। Overhead line में हम तार (wire ) को सामान्यतः नंगे ही ले जाते है। जिस पर कोई insulation नहीं लगा होता है। जबकि Underground transmission में हम insulated cable का इस्तेमाल करते है। Overhead line को पॉवर स्टेशन से हर घर तक पहुंचने के लिए हम तार को सपोर्ट देने के लिए पोल का इस्तेमाल करते है। आज के इस पोस्ट में हम समझेंगे की इलेक्ट्रिक पोल (electric pole) या सपोर्ट देने के लिए कितने प्रकार के होते है। तथा इन सब प्रकार के पोल का किस किस स्थिति में प्रयोग किया जाता है।
इलेक्ट्रिक पोल (electric pole in hindi):-
इसका इस्तेमाल overhead line को एक उचित ground clearance देने के लिए तथा supply को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

सपोर्ट कितने प्रकार के होते हैं(Types of supports in hindi):-
- पोल (pole)
- टॉवर (tower)
Note:- पोल को 33 kv और इससे कम के वोल्टेज को डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तथा टॉवर का उपयोग 132 kv और इससे उपर के वोल्टेज को ट्रांसमिट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इलेक्ट्रिक पोल के प्रकार(types of electric pole in hindi):-
सामान्यतः पोल को तीन भागों में बाटा गया है।
- वुडेन पोल (wooden pole)
- सीमेंट पोल(cement pole)
- स्टील पोल(steel pole)
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लकड़ी का पोल(wooden pole):-
वुडेन पोल मुख्यत तीन प्रकार के होते हैं। आजकल इस प्रकार के पोल का इस्तेमाल बहुत काम हो रहे है।
- सिंगल पोल
- A-type pole
- H-type pole
सीमेंट पोल(cement pole):-
सीमेंट पोल को कंक्रीट, बालू तथा सीमेंट को मिक्स करके बनाया जाता है। यह आजकल गांव के क्षेत्र में डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में प्रयोग किए जाते हैं। यह सामान्यतः दो प्रकार के होते है।
- Rcc pole
- Pcc pole
Rcc pole का full from ‘Reinforced cement concrete’ होता है। सीमेंट पोल मे यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला पोल होता है। इसकी तनाव बल (tension loading) ज्यादा होता है। क्योंकि इस पोल मे कंक्रीट के बीच स्टील के rod भी लगाए जाते हैं। इसकी आयु लगभग 100 साल तक रहती है।
Pcc पोल का फुल फॉर्म ‘plain cement concrete’ होता है मतलब कि इसमें कोई स्टील की मात्रा नहीं होती है। अतः इसकी tensile strength अपेक्षाकृत कम होती है। इसमें सिर्फ सीमेंट , कंक्रीट और बालू रहता है।
Note:-
- सीमेंट पोल मे सीमेंट, कंक्रीट और बालू की मात्रा 1:3:6 के अनुपात में रहती है।
- Cement pole में पोल की लंबाई 8 मीटर, 9 मीटर, 11 मीटर में पाई जाती है।
- इसकी मैकेनिकल strength लकड़ी के पोल से अधिक होती है ।
- Rcc तथा Pcc पोल का उपयोग LT लाइन में गांव में किया जाता है।
स्टील पोल:-
इस्पात पोल (steel pole) भी कई प्रकार के होते हैं। जिसको अलग – अलग जगह पर इस्तेमाल किया जाता है।
- Railway pole
- Tubllar pole
- Solid pole
Railway pole का इस्तेमाल रेल लाइन पर किया जाता है। इसके द्वारा रेल इंजन को इलेक्ट्रिक supply दी जाती है। जो को आप चित्र में देख सकते है। इसे लैक्टिक पोल भी कहा जाता है।

Tubllar pole लोहे का मोटा सा पाइपनुमा होता है। लेकिन इसकी मोटाई हर जगह समे नहीं होती है। इसकी मोटाई नीचे सबसे ज्यादा और उपर सबसे काम होती है। जो आपको चित्र में दिख रहा है।

Tublar पोल तीन लंबाई मे उपलब्ध है। जिसमे 9 मीटर, 11 मीटर तथा 13 मीटर है। 9 मीटर वाले पोल का भार 164 kg , 11 मीटर वाले पोल का भार 178 kg तथा 13 मीटर वाले पोल का भार 227 kg होता है।
इसका पोल का उपयोग 11 kv की लाइन में तथा 33 kv की लाइन में किया जाता है। यह पोल रोड लाइट या स्ट्रीट लाइट के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
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Solid pole :-
सॉलिड पोल मे दो प्रकार के पोल आते है।
- Rail pole
- H-Beam pole
Rail pole, rail की लाइन या पटरी के बना होता है। जो कि चित्र मे दिख रहा है। इसका उपयोग 11 kv की तथा 33 kv के line में होता है। इसका उपयोग रोड क्रॉसिंग मे भी किया जाता है।

रेल पोल मे अलग प्रकार के तीन ग्रेड होते हैं। जिसका प्रति मीटर भार अलग अलग होता है। और इस सभी ग्रेड का अलग अलग वोल्टेज के लिए अलग अलग लंबाई होती है जो नीचे टेबल के दर्शाया गया है।
Grade of pole | 33 kv | 11kv | LT Line |
---|---|---|---|
A-grade (60 kg/m) | 13 meter | 11 meter | ______ |
B-grade (52 kg/m) | 13 meter | 11 meter | ______ |
C-grade (45 kg/m) | 13 meter | 11 meter | Railway used |
H-Beam pole, अंग्रेजी के H लेटर के आकार का लोहे का पोल होता है। जिसका माप यह dimensions देते गए चित्र मे दिखाया गया है।
टॉवर (tower) :-
जब हम HT (high tension) voltage के transmission की बात करते है। तो हमे इसके लिए पोल नहीं टॉवर की जरूरत पड़ती है। और इस टॉवर को इस्पात के पने इंगल से बनाया जाता है। हम लोगों ने देखा भी होगा कि कैसे एक टॉवर की मदद से कंडक्टर को ले जाया जाता है। टॉवर का उपयोग 132 kv य इससे ऊपर के वोल्टेज की ट्रांसमिट करने के लिए किया जाता है। हम लोग एक बात जरूर नोटिस किए होंगे कि जो टॉवर लगे होते है वह अलग अलग प्रकार के होते है। टॉवर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है।

- Wide base
- Narrow base
Wide base टॉवर मे उसका जो निचला भाग होता है वह चौड़ा होता है। और यह ज्यादा तनाव बल को सहन कर सकता है।
Narrow base टॉवर मे निचला भाग थोड़ा अपेक्षाकृत पतला होटा है। जो काम तनाव बल सहता है।
इन दोनों प्रकार के टॉवर मे चार टाइप के टॉवर होते है। इन चारों प्रकार के टॉवर को उसकी उपयोगिता के आधार पर प्रयोग किए जाते है। जो निम्न है।
- A-type tower
- B-type tower
- C-type tower
- D-type tower
A-type के टॉवर का इस्तेमाल हम उस जगह पर करते है जहा ट्रांसमिशन लाइन को 0-2° अंश के कोण पर मुड़ाना है। अतः इस टाइप के टॉवर का इस्तेमाल लगभग सीधी जाने वाली ट्रांसमिशन लाइन में लिए जाता है।
B-type के टॉवर का इस्तेमाल उस जगह पर किया जाता है। जहा ट्रांसमिशन लाइन को 2-15° अंश तक मोड़ना हो।
C-type के टॉवर का इस्तेमाल वहां पर किया जाता है जहा ट्रांसमिशन लाइन को 15-30° अंश के कोण पर मोड़ना हो।
D-type के टॉवर का इस्तेमाल वह पर किया जाता है जहा पर ट्रांसमिशन लाइन को 30-60° अंश के कोण पर मोड़ना हो।
Note:-
60° अंश से अधिक हम ट्रांसमिशन लाइन को एक जगह से मोड़ नहीं सकते है। क्योंकि अगर हम 60° और 90° का टॉवर मे मोड़ देते है तो टॉवर पर अनावश्यक तनाव बल पड़ेगा और टॉवर टूट जाएगा। पोल के केस में जब हैं 60° और 90° अंश के मोड़ देते है तो उसमे स्टे वायर का इस्तेमाल करते है। और हम टॉवर मे स्टे वायर प्रयोग नहीं कर सकते । अतः यदि ट्रांसमिशन लाइन में 60° अंश से अधिक का मोड़ देना होता है तो हम ट्रांसमिशन लाइन को कुछ दूसरी पहले से ही मोड़ना शुरू कर देते है। ताकि हमारा उस विशेष स्थान पर मोड़ 60° अंश से कम हो सकते।
स्पेशल टॉवर(special tower):-
इस स्पेशल टॉवर को Rx-tower के नाम से भी जाना जाता है । यह टॉवर river क्रॉसिंग के जगह प्रयोग किया जाता है। यह अन्य टावरों के अपेक्षा अधिक ऊंचा होता है। इसकी ऊंचाई क्रॉसिंग के बीच की दूरी या span के आधार पर निर्धारित को जाती है। तथा ग्राउंड क्लियरेंस का निर्धारण उस नदी में आए पिछले 50 वर्षों के सबसे अधिक बाढ़ level के आधार पर किया जाता है। अतः इस टॉवर की ऊंचाई अत्यधिक बाढ़ जाती है। यह ऊंचाई अधिकतम 100 मीटर तक पहुंच जाती है।
River crossing पर लगे टॉवर पर अन्य टॉवर की अपेक्षा angle force ज्यादा लगता है। क्योंकि इसकी लंबाई अधिक होती है। चित्र मे angle force को दिखाया गया है।
इस angle force के लगाने से टॉवर क्षतिग्रस्त होने का दर रहता है। इसीलिए इसे काम करने के लिए Rx tower के सिध में दोनों ओर एक और टॉवर लगते है। जो Rx tower से अधिक छोटा होता है। जिससे उस पर लगा एंगल फोर्स कम हो जाता है। जैसे कि चित्र में दिखाया गया है। Rx tower अधिक लंबा होने के कारण ही इसे स्पेशल टॉवर कहते है।
Some important points :-
- Tower के फाउंडेशन (नीव) के लिए जमीन कि खुदाई 2.5 मीटर होती है।
- 132 kv या 220 kv की लाइन में केवल एक अर्थ वायर होता है।
- 400 kv की लाइन में दो अर्थ वायर लगते है। और कंडक्टर मे 4-wire एक phase मे bundaling करके लगाया जाता है। ताकि corona effect कम हो सके और capacitance भी अच्छा हो।
- टॉवर का औसत span 362 meter होता है।
- Earth wire लगाने के प्रक्रिया में प्रोटेक्शन एंगल के आधार पर लगाया जाता है। यह एंगल 20° से 30° तक होता है।
- 20° पहाड़ी क्षेत्र पर जहा बारिश की संभावना ज्यादा होने से lighting की सभंवना ज्यादा होती है। वहां पर प्रयोग किया जाता है। तथा सामान्यतः 30° प्रोटेक्शन एंगल प्रयोग किया जाता है।
- Lighting arrester मे resister non – leanear resistance लगा होता है।
Chandu Sir,
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Huii
क्या सर जॉब मिलेगा moob 6299009663
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