Conductor in Hindi | स्ट्रेंडेड कंडक्टर क्या होता है

परिचय:-

चालक (conductor in Hindi) ट्रांसमिशन लाइन का एक ऐसा भाग है। जो पावर को कैरी करने का काम करता है। आज के इस पोस्ट में कंडक्टर क्या होता है। यह कितने प्रकार का होता है। और ट्रांसमिशन लाइन में कौन सा कंडक्टर उपयोग में लाया जाता है। इसके बारे में विस्तार से डिस्कस करेंगे।

चालक क्या है (Conductor in Hindi):-

चालक या कंडक्टर एक धातु का बना ट्रांसमिशन लाइन का ऐसा भाग है जिसके द्वारा पावर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है। कंडक्टर ट्रांसमिशन लाइन में पावर को लो रजिस्टेंस प्रोवाइड करता है। जिससे पावर उच्च वोल्टेज पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से फ्लो करता है।

एक अच्छे कंडक्टर सलेक्ट करने के कुछ पॉइंट्स:-

एक अच्छे कंडक्टर को सलेक्ट करने के लिए उनमें निम्न प्रकार के गुण होने चाइए।

  1. चालक की धातु का लो रेजिस्टेंस होना चाइए।
  2. कंडक्टर का मैकेनिकल स्ट्रेंथ उच्च होना चाइए।
  3. कंडक्टर की लगता काम होनी चाइए।
  4. कंडक्टर वाली मेटल आसानी से उपलब्ध होनी चाइए।
  5. वजह में हल्की होनी चाइए।
  6. एक अच्छे चालक को वातावरणीय प्रभाव से मुक्त होना चाइए। मतलब की अगर ट्रांसमिशन लाइन ऐसे वातावरण में है जहां पर प्रदूषित क्षेत्र है तो ऐसे में चालक का प्रदूषण से रिएक्शन नहीं करना चाइए।

चालक या कंडक्टर के लिए कौन सा मैटेरियल प्रयोग होता है?:-

एक अच्छे चालक के लिए हम निम्न 4 प्रकार के धातु (material) का प्रयोग किया जाता है।

  1. कॉपर (copper)
  2. एल्यूमीनियम (Aluminum)
  3. स्टील (steel or GIS)
  4. Phosphor bronze

कॉपर कंडक्टर (Copper conductor in Hindi):-

Conductor में जितने भी प्रकार के है उनके से कॉपर कंडक्टर सबसे अच्छा कंडक्टर माना जाता है। क्योंकि इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है। यानी की विद्युत का अच्छा सुचालक होता है।

जो धातु सबसे काम रेसिसिटेंस वाला होता है। वह कंडक्टर के रूप में सबसे अच्छा होता है। अतः अगर हम विद्युत का सबसे अच्छा सुचालक मैटेरियल कहे तो वह सिल्वर (silver) मेटल है। जो की विद्युत का सबसे अच्छा सुचालक धातु माना जाता है। लेकिन हम लोग ने पहले के हेड लाइन में पढ़ें है कि कंडक्टर की लागत या कॉस्ट काम होनी चाइए ।

और आप यह जानते ही होंगे की सिल्वर की कॉस्ट कितनी हाई है। और साथ में ही सिल्वर का मैकेनिकल स्ट्रेंथ भी काम होता है। इसीलिए हम इसका उपयोग नहीं कर सकते है। भले ही इसकी चलकाता अधिक है।

कॉपर कंडक्टर का उपयोग (Use of copper conductor in Hindi):-

दोस्तों कॉपर कंडक्टर का उपयोग हम अगर ट्रांसमिशन लाइन की बात करे तो उसने हम इसका उपयोग नहीं करते है। इसके कुछ बेसिक कारण है।

  • यह कॉपर कंडक्टर वातावरण से रिएक्शन करता है। जिससे इस पर ऑक्साइड की परत जम जाती है।
  • यह कॉपर कंडक्टर अपेक्षाकृत अधिक भरी होता है।
  • यह कॉपर कंडक्टर अपेक्षा कृत महंगा भी होता है।
  • इसकी मैकेनिकल स्ट्रेंथ अपेक्षा कृत काम होती है।

यह उपर्युक्त कुछ बेसिक कारण है जिससे हम ट्रांसमिशन लाइन में प्रयोग नहीं करते हैं। जिसमे से मुख्य कारण यह है कि इससे ट्रांसमिशन लाइन की लागत बढ़ जाती है।

कॉपर कंडक्टर का रेलवे में प्रयोग :-

कॉपर कंडक्टर के ट्रांसमिशन लाइन के स्तर पर अगर हम बात करे तो इसका उपयोग हम रेलवे में ट्रेक्शन लाइन के लिए इस्तेमाल करते है। लेकिन इसमें भी कॉपर के साथ अन्य किसी मेटल के मिश्रण इस्तेमाल किया जाता है। ताकि यह पर्यावरण के प्रभाव से दूर रहे। और मैकेनिकल स्ट्रेंथ भी उच्च हो।

एल्यूमीनियम कंडक्टर (Aluminum conductor in Hindi):-

Aluminum धातु का कंडक्टर एक ऐसा कंडक्टर है जो ट्रांसमिशन लाइन में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला कंडक्टर है। इसके सबसे ज्यादा प्रयोग होने के कुछ कारण है।

  • यह वातावरण से किसी भी प्रकार का रिएक्शन नहीं करता है।
  • यह वजन में हल्का होता है।
  • यह लागत में भी कम होता है।
  • इसका रेजिस्टेंस कम होता है लेकिन कॉपर से अधिक होता है।
  • यह आसानी से उपलब्ध है। इसकी कमी न होने के कारण इसका लागत भी कम है।

स्टिल (steel or GIS):-

यह कंडक्टर के रूप में ट्रांसमिशन लाइन में अर्थ वायर को ओवरहेड लाइन के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी चालकता एलुमिनियम से भी कम होती है। लेकिन इसका मैकेनिकल स्ट्रैंथ एलमुनियम और कॉपर से अधिक होती है। इसका उपयोग हम एलुमिनियम कंडक्टर में जो ट्रांसमिशन लाइन में इस्तेमाल किया जाता है उसमें एलुमिनियम कंडक्टर को मेकेनिकली स्ट्रांग बनाने के लिए भी करते हैं। इसके अलावा इसका उपयोग स्टे वायर में किया जाता है।

फॉस्फोर ब्रॉन्ज (phosphor bronze conductor):-

Phosphor bronze धातु एक मिश्रित धातु (alloy) हैं। इसमें कॉपर के साथ 0.5 – 11 % टीन धातु और 0.1 – 0.35 % फास्फोरस का मिक्चर होता है। इसे टीन ब्रॉन्ज या रेड मेटल के नाम से भी जाना जाता है। यह कॉपर के अपेक्षा कम चालकाता वाला धातु है। लेकिन इसका मैकेनिकल स्ट्रेंथ बहुत ज्यादा उच्च होता है। अतः फिस्फोर ब्रॉन्ज धातु के बने कंडक्टर का प्रयोग ट्रांसमिशन लाइन में लंबे दूरी के span के लिए प्रयोग किया जाता है।

कभी कभी ट्रांसमिशन लाइन को नदियों और पहाड़ों से गुजरना रहता है। जैसे कारण ट्रांसमिशन लाइन में प्रयोग होने वाले सपोर्ट के रूप में टावरों को एक दूसरे के बीच को दूरी बहुत ज्यादा रखनी पड़ती है। यह दूरी कभी कभी एक किलोमीटर तक हो जाती है। अतः ऐसी स्थिति में हम सामान्यत प्रयोग होने वाले ACSR कंडक्टर का प्रयोग नहीं करते है। क्योंकि इसका मैकेनिकल स्ट्रेंथ उतनी दूरी के संदर्भ में काम होता है। इसलिए इस स्थिति में हम फास्फोरस ब्रॉन्ज के बने कंडक्टर का इस्तेमाल करते है।
Phosphor bronze कंडक्टर का प्रयोग हम पोल्यूटेड क्षेत्र में भी करते है। जैसे अमोनिया की फैक्ट्री में । यह धातु चुकी alloy है इसीलिए यह ज्यादा कॉस्टली होता है।

स्ट्रेंडेड कंडक्टर (stranded conductor in Hindi):-

बहुत पतले पतले कंडक्टर को मिलाकर उन सभी पतले चालक तारों को ऐंठ कर बनाया गया चालक तार जिसके केंद्र में या बीच में स्टील का तार हो उसे स्ट्रेंडे कंडक्टर कहते हैं। जैसा की आपको नीचे चित्र में दिख रहा होगा।

conductor in Hindi

स्ट्रेंडेड कंडक्टर ही हम ट्रांसमिशन लाइन में और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में इस्तेमाल करते हैं। यह एल्यूमीनियम धातु का होता है। जिसके बीच में GI steel का तार लगा होता है। एल्यूमीनम के इस प्रकार के चालक को ACSR कंडक्टर कहते हैं। स्ट्रेंडेड कंडक्टर के पतले तार के कितने तार लगेंगे। अगर एक लेयर की मोटाई वाला कंडक्टर बनाना है तो कितना पतले तार प्रयोग होंगे। इसके लिए एक सूत्र का प्रयोग होता है। जो निम्न है।

N = 1 + 3n (1 + n)
जहां N = total number of sub conductor or पतले तारों को संख्या
N = number of layer

conductor in Hindi

आप चित्र में देख सकते है। यदि हमे एक लेयर की चालक तार बनाना है, तो पतले एल्यूमीनियम के कितने तार प्रयोग किया जाएगा।

सूत्र के द्वारा –

N = 1 + 3×1 (1+1)
N = 1 + 3×2
N = 7 तार

यानी की यहां एक लेयर की स्ट्रेंडेड कंडक्टर बनाने में 7 पतले तार प्रयोग होगा। जिसमे से एक बीच का तार GI steel का होगा। बाकी 6 तार एल्यूमिनम होगा।

इसी प्रकार हम सूत्र में लेयर की संख्या रखकर कूल कितने पतले तार लगेगें। इसको हम ज्ञात कर सकते हैं। नीचे आपको एक टेबल दिया गया है। जिसमे इसी सूत्र में आधार पर पाते तारों को संख्या को निकला गया है।

No. of LayerTotal number of sub conductor
17
219
337
461
591
6127

Total diameter of the stranded conductor:-

अब चुकी हम लेयर के आधार पर पतले तारों की संख्या तो ज्ञात कर ले रहे हैं। लेकिन अगर हमें चालक तार का डायमीटर ज्ञात करना है तो क्या करेंगे। तो इसके लिए भी एक सूत्र होता है। जो निम्न है।

D = (1+ 2n) d

जहां D = पूरे कंडक्टर का diameter
d = एक पतले तार का डायमीटर
n = number of layer

Cross sectional area of stranded conductor :-

अब जब हम ऊपर दिए गए सूत्र के अनुसार strended कंडक्टर का डायमीटर निकल लेंगे तो उसके बाद यदि हमे पूरे स्ट्रेडेड कंडक्टर का क्रॉस सेक्शनल एरिया निकला हो तो इसके लिए भी एक फार्मूला आता है। जो निम्न है।

क्रॉस सेक्शनल एरिया = (π/4)D²

जहां D = पूरे कंडक्टर का daimeter या strended कंडक्टर का डायमीटर

30/ 7 ACSR कंडक्टर का क्या मतलब है :-

यह एक प्रकार से ACSR कंडक्टर के stranded की प्रकृति को दिखाता है। इसमें 30/7 में 30 पतले एल्यूमिनम कंडक्टर की संख्या है। तथा 7 GI steel की संख्या है। जब 30/7 के आगे कोई और नंबर जैसे (30/7)1.2 आ जाए तो इसमें 1.2 पतले तार का डायमीटर है। यानी कि इसमें 1.2mm पतले डायमीटर वाला तार  प्रयोग किया गया है।

ACSR conductor in Hindi:-

ACSR का फुल फॉर्म aluminium conductor steel reinforce है। मतलब की एल्यूमीनियम का ऐसा कंडक्टर जैसे बीच में GI steel का चालक तार लगाया जाता है। और किनारे पर एल्यूमीनियम चालक तार लगाया जाता है। इस प्रकार के चालक तार को ही ACSR कंडक्टर कहते है।

Advantage of ACSR conductor:-

  1. वजन में हल्का
  2. उच्च मैकेनिकल स्ट्रेंथ

Disadvantages of ACSR conductor:-

इसके बीच में लगा स्टील के कारण इसका ज्वाइंट बनाने में कठिनाई होती है। और इसको रिंग आकार में मोड़ने में भी कठिनाई होती है।

उपयोग:-

इसका उपयोग ट्रांसमिशन लाइन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन दोनो में किया जाता है।

अन्य एल्यूमीनियम कंडक्टर:-

ACSR चालक तार के अलावा भी अन्य एल्यूमीनियम के चालक तार आते हैं। जो निम्न है।

  • AAAC (All aluminum alloy conductor
  • AAC aluminum alloy conductor

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