analysis of cable in hindi | केबल का विश्लेषण

परिचय:-

जैसा कि हम पहले ही केबल क्या होता है और कहां-कहां प्रयोग किया जाता है यह सारी बातें पढ़ चुके हैं। अतः आज के इस पोस्ट में हम केवल के गुण-धर्मों का विश्लेषण करेंगे।

केबल का विश्लेषण (analysis of cable in Hindi):-

इस केबल के विश्लेषण में हम केबल के विभिन्न प्रकार के गुणों को समझेंगे। इसके अंतर्गत हम विभिन्न प्रकार के टॉपिक को कवर करेंगे जैसे कि –

  • केबल का कैपेसिटेंस (capacitance of cable)
  • Calculation of capacitance of three core cable
  • Measuring of capacitance of a three core cable
  • रिएक्टिव पावर प्रोवाइडेड बाय केबल
  • Dielectric loss in cable
  • Most economical size of cable
  • Grading of cable
  • फॉल्ट इन केबल

केबल का कैपेसिटेंस (capacitance of cable):-

दोस्तों, आपको चित्र में एक केबल का डायग्राम दिख रहा होगा। इसमें बीच में कंडक्टर है। जिसकी त्रिज्या या रेडियस r है। और उसके बाहरी तरफ एक insulation की लेयर है। जिसकी मोटाई चित्रानुसार केंद्र से दूरी d है। अब चुकी इसका सामान्य फार्मूला निम्न होगा।

फार्मूला फिगर1

अगर हम ओवरहेड लाइन की बात करें तो इस केस में  εr = 1 होगा। क्योंकि वायु के εr का मान एक होता है।
अतः इस प्रकार अब सूत्र में निम्न प्रकार का बदलाव होगा।

फार्मूला फिगर 2

लेकिन केबल के केस में चालक सीधे वायु के संपर्क में नहीं आता है। अतः इस स्थिति में  εr > 1 होगा। अतः इस स्थिति में केबल का कैपेसिटेंस का प्रति फेस निम्न होगा।

फार्मूला फिगर3

अब चुकी केबल का कैप्सिटेंस केबल के चार्जिंग करंट पर निर्भर करता है। अतः केबल का सामान्य चार्जिंग (Ic) करंट का फार्मूला निम्न होगा।

केबल के चार्जिंग करंट से पता चलता है कि केबल का कैपेसिटेंस केबल के चार्जिंग करंट का मान बढ़ने पर बढ़ेगा। इसके साथ ही चार्जिंग करंट का मान अंडरग्राउंड केबल की तुलना में ओवरहेड लाइन में काम होता है।

Calculation of capacitance of three core cable :-

दोस्तों आपको चित्र में दिख रहा होगा कि एक 3 कोर केबल का चित्र दिखाया गया है। इसमें कोर A, कोर B तथा कोर C है।

analysis of cable in hindi

चित्र 2 के अनुसार हम देखते हैं कि इसमें हम दो प्रकार के  कैपेसिटेंस को मापते है। पहला Ce है। जो चालक तार या कंडक्टर और अर्थ के बीच का कैपेसिटेंस है। और दूसरा Cc कैपेसिटेंस है। जो कंडक्टर और कंडक्टर के बीच का कैपेसिटेंस हैं।

analysis of cable in hindi

आपको उपर्युक्त चित्र में दिख रहा होगा कि ये कैपेसिटर जो बनाया गया है। वो डेल्टा में connected है। अतः हम उसे डेल्टा से स्टार कनेक्शन में कन्वर्ट करते हैं।

कैपेसिटर डेल्टा से स्टार में बदलना:-

अब आपको चित्र में देख सकते हैं कि इसमें डेल्टा से स्टार में बदल दिया गया है। अब इसके equivalent circuit नीचे दिखाए गए चित्र के अनुसार होगा।

analysis of cable in hindi

इस चित्र के अनुसार अब हम कह सकते हैं कि 3 कोर केबल के प्रति फेस कैपेसिटेंस
Cph = 3 Cc + Ce  होगा।

नोट :- आपको यह याद रखना होगा कि थ्री कोर केबल के प्रति फेस का चार्जिंग करंट, सिंगल कोर केबल के चार्जिंग करंट से अधिक होता है। और उसमे कैपेसिटेंक्र को प्रैक्टिकली शेयरिंग ब्रिज से मापा जाता है।

Measuring of capacitance of a three core cable:-

दोस्तों, थ्री कोर केबल का कैप्सिटेंस को मुख्यतः दो प्रकार से मापेंगे।

पहला स्थिति :-

पहली स्थिति में हम तीनो कंडक्टर को शॉर्ट कर देते हैं। तथा इन तीनो शॉर्ट किए हुए कंडक्टर और अर्थ के बीच का कैपेसिटेंस मापते हैं। चित्र में आपको दिख रहा होगा कि तीनो कंडक्टर को शॉर्ट किया गया है। अतः इसका इक्विवलेंट सर्किट कुछ इस प्रकार होगा।

analysis of cable in hindi

अतः इक्विवलेंट सर्किट के अनुसार C1= 3Ce होगा।

दूसरी स्थिति में हम किसी दो कंडक्टर को केबल के मेटैलिक sheath से शॉर्ट कर देते हैं। अतः उसके बाद equivalent कैपेसिटेंस मेजर करते है। अतः इसके लिए equivalent इक्वेशन निम्न प्रकार होगा। उपर्युक्त चित्र से हमारा समीकरण C2 = 2Ce + Cc होगा।

महत्वपूर्ण बिंदु:-

केबल से अधिक दूरी तक पावर का ट्रांसमिशन नहीं कर सकते क्योंकि जितनी केबल की लंबाई बढ़ाएंगे। उतनी ही केबल की चार्जिंग करंट का मान बढ़ेगा। अतः ट्रांसमिशन लाइन में अधिक दूरी तक AC power को केबल के द्वारा ट्रांसमिट नही कर सकते हैं।

अतः इसके लिए एक मानक सेट किया गया है। जिसके आधार पर हम सिर्फ उतने ही लंबाई के केबल द्वारा अल्टरनेटर पावर को ट्रांसमिट कर सकते हैं। जैसे कि –

  • 132 KV के लाइन को सिर्फ 60 किमी तक ही केबल द्वारा ट्रांसमिट कर सकते हैं।
  • 220kv के लाइन को 40 किमी तक ही केबल के द्वारा ट्रांसमिट कर सकते हैं।
  • इसी प्रकार 400 केवी की लाइन को सिर्फ 25 किमी तक ही केबल के द्वारा ट्रांसमिट कर सकते हैं।
  • DC power को केबल के द्वारा ट्रांसमिट करने के लिए केबल की लंबाई की कोई लिमिट नही होती हैं।

डीसी सप्लाई के स्थिति में केबल का चार्जिंग करंट:-

दोस्तों जैसा की हम जानते हैं कि केबल के चार्जिंग करंट का फार्मूला Ic = 2 π f C Vph होता हैं।

जहां Ic = चार्जिंग करंट
f = frequency
C = Capacitance
Vph = phase voltage

क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसी सप्लाई का कुछ न कुछ एक निश्चित फ्रीक्वेंसी जरूर होता है। अतः चार्जिंग करंट भी मौजूद होता है। लेकिन अगर हम डीसी सप्लाई की बात करें तो हम देखते हैं कि डीसी सप्लाई में फ्रीक्वेंसी जीरो होती है।

अतः जब हम चार्जिंग करंट के सूत्र में f = 0 रखेंगे तो केबल का चार्जिंग करंट शून्य हो जाएगा। यही कारण है कि डीसी सप्लाई को ट्रांसमिट करने के लिए केबल का इस्तेमाल को करने में कोई लिमिट नहीं होती है। आप कितनी भी लंबाई का केबल इस्तेमाल कर सकते हैं।

केबल द्वारा उत्पन्न किया रिएक्टिव पावर:-

केबल द्वारा चार्जिंग करंट के कारण उत्पन्न होने वाला रिएक्टिव पावर का सूत्र निम्न प्रकार होता है।

Q = 1/2 (CV²)

दोस्तों अलग अलग वोल्टेज के ट्रांसमिशन लाइन में प्रयोग किए गए केबल का रिएक्टिव पावर अलग अलग होता है। जैसे कि

  • 132 केवी ट्रांसमिशन लाइन में केबल 1.25 MVAR प्रति सर्किट प्रति किलोमीटर का रिएक्टिव पावर पैदा करता है।
  • 220 केवी का ट्रांसलेशन लाइन में केबल 3.00 MVAR प्रति सर्किट प्रति किलोमीटर का रिएक्टिव पावर पैदा करता है।
  • 400 केवी का ट्रांसमिशन लाइन में केबल 10 MVAR प्रति सर्किट प्रति किलोमीटर का रिएक्टिव पावर पैदा करता है।

Dielectric stress in cable:-

जब केबल के द्वारा उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन को ले जाया जाता है तो उच्च वोल्टेज के कारण केबल के इंसुलेशन पर एक तनाव या स्ट्रेस लगता है। जिसे केबल का डायलेक्टिक्स ट्रेस कहते हैं। आपको नीचे चित्र में दिख रहा होगा कि एक केबल है। जिसके कंडक्टर की रेडियस r है। तथा उसी केबल का इंसुलेशन रेडियस R है। तथा इसके साथ ही इसमें एक और रेडियस x का वर्णन है जो कि इंसुलेशन पर खींचा गया वह रेडियस है जो कंडक्टर के सबसे नजदीक है।

कंडक्टर में एसी पावर सप्लाई के कारण कंडक्टर के ऊपरी लेयर पर सबसे ज्यादा स्ट्रेस होता है। अतः केबल के इंसुलेशन का डॉयलेक्ट्रिक स्ट्रेस कंडक्टर के और उससे सटे इंसुलेशन पर सबसे ज्यादा होता है। जिससे हम gmax से प्रदर्शित करते हैं।

और वही उसके विपरीत केबल के इंसुलेशन का बाहरी सतह पर सबसे कम dielectric stress होता है। अतः इसे gmin से प्रदर्शित करते हैं। और इसके साथ ही हम यह देखते हैं कि x रेडियस वाले स्थान पर डायलेक्ट्रिक स्ट्रेस gx होता है।

Most economical size of cable:-

दोस्तों डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेस के फार्मूला के आधार पर हम ज्ञात कर सकते हैं कि सबसे कम या इकोनॉमिक केबल का साइज क्या हो सकता है।

इसमें ऊपर के हेडिंग के चित्र में दिखाए गए सूत्र में R तथा r के औसत को एक बैलेंस बनाकर किया जाता है। और इसे ऐसे बैलेंस किया जाता है कि ताकि gmax की वैल्यू सबसे कम आनी चाइए।

अतः gmax की वैल्यू को सबसे कम करने के लिए इसके फार्मूला में नीचे वाले का मान सबसे ज्यादा होना चाइए ताकि ओवरऑल gmax की वैल्यू सबसे काम हो जाए।

उपर्युक्त चित्र में से आप देख सकते हैं कि इसमें R/r = e = 2.718 है। अतः gmax मिनिमम ले लिए R/r का अनुपात 2.718 होने चाइए।

केबल का ग्रेडिंग करना (Grading of cable in hindi):-

अब हम जान चुके है कि केबल के कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर पर डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेस सबसे अधिक होता है। अतः हम ग्रेडिंग मेथड के द्वारा डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेस को पूरे इंसुलेटर पर समान रूप से डिस्ट्रीब्यूट करते है। जिससे इंसुलेटर पंक्चर होने से बच जाता है। अतः ग्रेडिंग करने के निम्न दो प्रोसेस होते हैं।

  1. कैपेसिटेंस ग्रेडिंग (capacitance grading)
  2. Inter sheath grading

Capacitance grading of cable:-

इस विधि में डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेस को इंसुलेशन मैटेरियल पर समान रूप से वितरित करने के लिए अलग-अलग प्रकार के इंसुलेशन मैटेरियल का प्रयोग करते हैं। अलग-अलग प्रकार के इंसुलेशन मैटेरियल प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि अलग-अलग प्रकार के इंसुलेशन मैटेरियल का डायलेक्टिक स्ट्रेंथ अलग अलग होता है।

हम मान लेते हैं कि हम तीन प्रकार के डायलेक्टिक स्ट्रैंथ वाले इंसुलेशन मैटेरियल का प्रयोग करते हैं। जिसका अधिकतम डायलेक्टिक्स स्ट्रेस क्रमशः जी gmax1, gmax2, gmax3 है। और उसका रिलेटिव परमिटिविटी भी क्रमशः εr1, εr2, εr3 है इस सलूशन को नीचे चित्र में देख सकते हैं।

उपर्युक्त मैथमेटिकल प्रोसेस से आप समझ सकते हैं कि यदि r < r1 < r2  है। तो प्रत्येक इंसुलेटिंग मैटेरियल का रिलेटिव पार्मिटिविटी का क्रम निम्न प्रकार होगा। εr1 > εr2 > εr3

Inter sheath grading:-

ग्रेडिंग के इस विधि में हम एक ही प्रकार के dielectric strength वाले मटेरियल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इसमें डाइलेक्ट्रिक मैटेरियल के कई लेयर बनाकर उन्हें के बीच में मेटैलिक sheath को लगा देते हैं। तथा प्रत्येक sheath पर अलग-अलग वोल्टेज के सप्लाई देते हैं। जिससे प्रत्येक sheath के बीच का वोल्टेज डिफरेंस बराबर होती है। अलग-अलग के कारण इंसुलेशन पंचर नहीं हो पाता है। और sheath में करंट फ्लो होने के कारण कोई वोल्टेज ड्रॉप भी नहीं होता है।

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