पावर फैक्टर क्या है? इसे कैसे कम करें?: इंटरव्यू सवाल

परिचय:

दोस्तों पावर फैक्टर से संबंधित हमने पहले से ही एक पोस्ट लिख रखा है। यह जो पोस्ट हम लिख रहे हैं इस पोस्ट के माध्यम से इंटरव्यू में पूछे जाने वाले कुछ पावर फैक्टर से संबंधित सवालों को कवर करेंगे।

पावर फैक्टर क्या है?:

पावर फैक्टर करंट फेजर और वोल्टेज फेजर के बीच का को साइन (cos φ) एंगल का मान है। पावर फैक्टर की कुल 3 स्थितियां होती हैं। लीडिंग, लेगिंग और यूनिटी?

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पावर फैक्टर में लीडिंग लैगिंग और यूनिटी का क्या मतलब है?

किसी भी सप्लाई में पावर फैक्टर की तीन स्थितियां होती हैं लीडिंग लेगिंग और यूनिटी। यह तीनों स्थितियां अलग अलग प्रकार के लोड कनेक्ट होने के कारण होती है। जैसे कि यदि हमारा सप्लाई में इंडक्टिव टाइप का लोड लगा है, तो हमारा पावर फैक्टर लैगिंग होगा। यदि हमारा लोड की प्रकृति रेजिस्टिव है, तो हमारा पावर फैक्टर यूनिटी होगा और यदि हमारा लोड की प्रकृति कैपेसिटिव है,तो पावर फैक्टर लीडिंग होगा।

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लोड के आधार पर लीडिंग लैगिंग और यूनिटी कैसे डिसाइड होती है?

पावर फैक्टर लीडिंग लेगिंग और यूनिटी डिसाइड करने के लिए हम फेज डायग्राम में करंट और वोल्टेज के आगे पीछे चलने के आधार पर डिसाइड करते हैं। इसमें हम करंट के वोल्टेज से आगे पीछे चलने के आधार पर ही लीडिंग, लेगिंग को डिसाइड करते हैं। जैसे कि अगर मान लीजिए कि करंट वोल्टेज से एंटीक्लाकवाइज के डायरेक्शन में किसी एंगल पर आगे चल रहा है तो हम उस कंडीशन में पावर फैक्टर लीडिंग लेते हैं। और यदि हमारा करंट वोल्टेज से किसी भी एंगल पर पीछे चल रहा है तो उस स्थिति में हम लेगिंग पावर फैक्टर लेते हैं। और यदि करंट वोल्टेज के फेज में ही चल रहा है यानी कि करंट और वोल्टेज के फेजर डायग्राम के बीच कोण का मान जीरो है, तो इस स्थिति में हमारा पावर फैक्टर यूनिटी होता है।

करंट फेजर और वोल्टेज फेजर के बीच का कोण जीरो होने पर पावर फैक्टर यूनिटी कैसे होता है?

चलिए मान लेते हैं कि करंट फेजर और वोल्टेज फेजर के बीच का कोण का मान शून्य है। तो हम जानते हैं कि पावर फैक्टर का मान cos φ का ही मान होता है। अतः इस cos φ में φ के स्थान पर अगर जीरो रखेंगे, तो cos 0° का मान एक (1) होता है। यानी कि हमारा पावर फैक्टर भी यूनिटी हो जाएगा।

हमारे घरों में किस टाइप का पावर फैक्टर होता है?

चुके हमारे घरों में मिक्स टाइप का लोड होता है। जिसमें रेजिस्टिव लोड के साथ-साथ इंडक्टिव लोड भी होता है। जैसे कि अगर हम घरों में इंडक्शन हीटर का इस्तेमाल करते हैं तो इंडक्शन हीटर इंडक्टिव टाइप का लोड है। और अगर हम अपने घरों में इलेक्ट्रिक बल्ब का इस्तेमाल करते हैं तो इलेक्ट्रिक बल्ब रजिस्टर टाइप का लोड हैं। इस तरह ओवराल अगर हम देखे तो हमारे घरों में मिक्स टाइप कर लोड देखने को मिलता है। और इसमें मिक्स टाइप की लोड के कारण ही हमारे घरों में पावर फैक्टर लैगिंग  होता है।

पावर फैक्टर लैगिंग होने से क्या प्रभाव पड़ता है?

पावर फैक्टर लैगिंग होने पर पहली बात तो हमे ये पता चलता है कि हमारा लोड की प्रकृति inductive load है। पावर फैक्टर ज्यादा लैगिंग होने से पावर लॉस बढ़ता है। जिससे घर की बिजली का बिल बढ़ता है।

पावर फैक्टर ज्यादा लैगिंग होने से बिजली का बिल कैसे बढ़ जाता है?

Power factor ज्यादा लेगिंग होने से करंट कमान बढ़ जाता है जिससे लॉसेज बढ़ते हैं। अपने घरों में ज्यादा इंडक्टिव लोड इस्तेमाल करने से प्रभाव यह पड़ता है कि हम बिजीली का बिल तो उतना उतना ही देना पड़ता है लेकिन हम बिजली के बिल के हिसाब से पावर को खर्च नही कर पाते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए के आप किसी पब में पार्टी करने जाते हैं और वहा आप एक ग्लास बीयर लेते है तो आपको वह पूरा एक ग्लास बीयर का पैसा तो लेगा और बीयर भी पूरी ग्लास भर के देगा। लेकिन आप देखेंगे तो आप पाएंगे की ग्लास में बीयर सिर्फ तीन हिस्सा है और एक हिस्सा झाग भरा है। यानी झाग के पैसे भी दिए लेकिन उसका वास्तव में कोई उपयोग नहीं है। अतः इस संदर्भ में झाग हमारे लिए पावर फैक्टर का ज्यादा लैगिंग होना है।

पावर फैक्टर को सुधारने के लिए क्या किया जा सकता है?

पावर फैक्टर को सुधारने के लिए हम जो हमारा लोड लगा है उसी लोड के समांतर में एक कैपेसिटी लोड (कैपेसिटर) लगाते हैं। यह कैपेसिटी लोड पावर फैक्टर को सुधार देता है। वास्तव में होता क्या है कि जो हमारा इंडक्टिव लोड है वह सप्लाई से रिएक्टिव पावर लेता है। ज्यादा रिएक्टिव पावर लेने के कारण हमारा पावर फैक्टर ज्यादा लेगिंग होता है। अतः ज्यादा रिएक्टिव पावर लेने की प्रक्रिया को कम करने के लिए हम कैपेसिटर उस लोड के समांतर में लगाते हैं। कैपसीटर वास्तव में रिएक्टिव पावर सप्लाई को डिलीवर करता है, यानी कि पॉजिटिव रिएक्टिव पावर देता है। जबकि इंडक्टर नेगेटिव रेक्टिफायर देता है यही कारण है कि जो इंडक्टिव लोड सप्लाई से रिएक्टिव पावर ले रहा है, वह कैपेसिटी पूरा कर देता है। और इस कारण रिएक्टिव पर लेने और देने की प्रक्रिया में बैलेंस आ जाती है। और हमारा पावर फैक्टर सुधर जाता है।

फैक्ट्री में पावर फैक्टर कैसे सुधारा जाता है?

फैक्ट्रियों में चुकी इंडक्टिव लोड ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है अतः फैक्ट्री में यूज होने वाले सप्लाई का पावर फैक्टर बहुत ज्यादा लैगिंग होता है। अतः इस पावर फैक्टर लैगिंग को सुधारने के लिए हम APFC पैनल (Automatic power factor controller) का इस्तेमाल करते हैं। इस पैनल में बहुत सारे कैप सीटर को एक साथ कनेक्ट करके ऑटोमेटिक सिस्टम सिस्टम द्वारा पावर फैक्टर को सुधारा जाता है। या पैनल अगर सप्लाई की पावर फैक्टर ज्यादा लेगिंग होती है तो उसे ऑटोमेटिक तरीके से सुधार देता है।

कैपेसिटर के अलावा और किस यंत्र द्वारा और फैक्टर सुधारा जा सकता है?

कैपेसिटर के अलावा सिंक्रोनस मोटर के द्वारा पावर फैक्टर को सुधारा जा सकता है। सिंक्रोनस मोटर को यदि हम no-load की स्थिति में full excitation से चलाएं तो सिंक्रोनस मोटर रिएक्टिव पावर उत्पन्न करता है जो सप्लाई को डिलीवर करता है। जिससे पावर फैक्टर सुधर जाता है। इस प्रकार के सिंक्रोनस मोटर का उपयोग हम ट्रांसमिशन लाइन में उपस्थित सब – स्टेशनों पर इस्तेमाल किए जाते हैं।

क्या डीसी सप्लाई की स्थिति में पावर फैक्टर होता है?

नहीं, डीसी सप्लाई की स्थिति में कोई पावर फैक्टर नहीं होता है।

डीसी सप्लाई में पावर फैक्टर क्यों नहीं होता है?

डीसी सप्लाई में चुकी फ्रीक्वेंसी जीरो होने के कारण रिएक्टिव पावर, एवरेज पावर, एक्टिव पावर सब एक ही होता है। अतः इस स्थिति में कोई पावर फैक्टर नहीं होता है।

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