ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग क्या क्या है और इसके उपयोग क्या है

परिचय:

दोस्तों, ट्रांसफार्मर के बारे में हमने पढ़ ही चुके है। लेकिन आज के इस पोस्ट के जरिए हम ट्रांसफार्मर के सभी पार्ट (ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग) के बारे में एक एक करके समझेंगे। क्योंकि आपको पता होगा कि एक ट्रांसफार्मर बहुत सारे इंपोर्टेंट भागों से मिलकर बना होता है। अतः इसको हमे समझना बहुत ही जरूरी है। जब हम एक ट्रांसफार्मर के सभी पार्ट को अच्छे से समझ जायेंगे तो हमे एक ट्रांसफार्मर के वर्किंग कैंसेप्ट को अच्छे से समझ जायेंगे। और साथ ही में हम इस ट्रांसफार्मर जैसे महंगे यंत्र को कैसे फॉल्ट से प्रोटेक्ट करते है ये भी आसानी से समझ जायेंगे।

ट्रांसफार्मर क्या होता है?:

दोस्तों, हालाकि ट्रांसफार्मर के बारे में हम पहले भी बता चुके है की एक ट्रांसफार्मर क्या होता है इसके अधारुभूत काम क्या है। लेकिन एक आर्टिकल का सही मतलब यह होता है उस आर्टिकल में परफेक्शन दिखे अतः इसमें थोड़ा आर्टिकल को सही करने के लिए ट्रांसफार्मर के बारे थोड़ा जानकर देना होगा। अतः एक ट्रांसफार्मर का बेसिक काम यह होता है। यह डिवाइस इलेक्ट्रिक पावर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने का काम करता है। यह इसमें इलेक्ट्रिक पावर के वोल्टेज लेवल को बढ़ा कर या घटा कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम करता है।

ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग

जो ट्रांसफार्मर वोल्टेज लेवल बढ़ने का काम करता है। उसमे हम स्टेप ट्रांसफॉमर कहते है। और जो ट्रांसफार्मर वोल्टेज लेवल घटाने का काम करता है। उसे हम स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर कहते है। और आपको पता होना चाइए की सबसे ज्यादा मात्रा में स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का सिर्फ और सिर्फ उपयोग हमारे पावर जेनरेशन स्टेशन पर किया जाता है। उसके बाद से जीतने भी सबस्टेशन होते है वहा पर आए पावर को स्टेप डाउन करके ही अन्य जगह पर भेजा जाता है।

ट्रांसफार्मर के पार्ट (Parts of transformer):

अगर हम ट्रांसफार्मर के विभिन्न प्रकार के भागों को बात करे तो ट्रांसफार्मर में बहुत सारे पार्ट्स होते है जिसको नीचे दिखाया गया है।

1. मेन टैंक
2. ट्रांसफार्मर ऑयल
3. कंजरवेटर टैंक
4. बुशिंग (प्राइमरी एंड सेकेंड्री)
5. Bukhloz रिले
6. रेडिएटर
7. कूलिंग फैन
8. Vent पाइप
9. ब्रेदर
10. कंट्रोल पैनल
11. ग्राउंड टर्मिनल
12. ड्रेन वाल्व
13. ऑयल लेवल इंडिकेटर
14. ऑयल टेंपरेचर इंडिकेटर

मेन टैंक :

ट्रांसफार्मर का यह पार्ट एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सबसे बाहर वाला हिस्सा होता है। ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को इसी मेन टैंक में डाला जाता है। तथा इसके साथ उसी टैंक में ट्रांसफार्मर ऑयल को भर दिया जाता है। जिससे इस टैंक में रखे वाइंडिंग पूरी तरह से पाइप में डूबा रहे। यह टैंक ट्रांसफार्मर के मुख्य वाइंडिंग को बाहरी आघातों से सुरक्षा प्रदान करता है। और साथ साथ में टैंक में भरा ट्रांसफार्मर ऑयल वाइंडिंग को इन्सुलेशन भी प्रदान करता है। मेन टैंक को इस्पात के चादरों से बनाया जाता है। तथा बाहरी परत पर ऑयल पेंट से कोटिंग किया जाता है।

ट्रांसफार्मर ऑयल:

ट्रांसफार्मर में इस ऑयल को इस्तेमाल करने के कारण ही इसे ट्रांसफार्मर ऑयल कहते हैं। ट्रांसफार्मर ऑयल का मुख्य रूप से काम यह होता है की यह ऑयल ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग को कूलिंग प्रदान करता है। चुकी हमे पता है की जब ट्रांसफार्मर लोड की कंडीशन में रन करता है तो उस स्थिति में ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग हिट होती है। जिससे अगर उसे ठंडा नहीं किया जाता है तो यह वाइंडिंग जल्दी ही जल सकती है। और ट्रांसफार्मर के फॉल्ट आ सकता है। अतः वाइंडिंग को ठंडा रखने के लिए हम ट्रांसफार्मर ऑयल में वाइंडिंग को डुबो कर रखते है।

इसके साथ ही ट्रांसफार्मर का ऑयल एक और काम यह करता है कि यह ऑयल वाइंडिंग को इनसुलेशन प्रदान करता है। ताकि वाइंडिंग के wire एक दूसरे से शॉर्ट सर्किट ना हो जाए।

Conservator tank:

ट्रांसफार्मर में एक उसके ऊपर के हिस्से पर एक टैंक लगा होता है। जिसे हम कंजरवेटर टैंक कहते है। यह टैंक भी ट्रांसफार्मर ऑयल से भरा रहता है। लेकिन यह टैंक पूरी तरह फुल नहीं भरा रहता है। इसमें ऑयल लेवल फुल लेवल से कम बहुत कम लेवल तक भरा रहता है। कंजरवेटर टैंक का काम ट्रांसफार्मर में ऑयल की मात्रा को मेंटेन रखने के लिए किया जाता है।

तथा इसके साथ ही कंजरवेटर टैंक ट्रांसफार्मर में हिट बढ़ने के समय जो ऑयल वाष्प बनकर टैंक में प्रेशर की मात्रा को बढ़ाता है उसे यह टैंक मेंटेन करता है। इसीलिए इस टैंक में खाली जगह छोड़ा जाता है ताकि जब ऑयल हिट होता है तो ऑयल में प्रसार होता है। जिससे ऑयल लेवल बढ़ता है। अतः उस ऑयल लेवल के बढ़ने को मेंटेन करने के लिए oil का एक्स्ट्रा हिस्सा कंजरवेटर टैंक में चला जाता है। जिससे मेन टैंक का ऑयल प्रेशर कम हो जाता है। अगर कंजरवेटर टैंक न रहे तो ऑयल के प्रसार के समय में मेन टैंक में ऑयल का प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ जायेगा जिससे टैंक में ब्लास्ट या लीक होने के चांस बढ़ जाते है।

बुशिंग (प्राइमरी और सेकेंड्री):

ट्रांसफार्मर का जो प्राइमरी और सेकेंड्री टर्मिनल है उसी टर्मिनल में सिरेमिक का बना इंसुलेटर लगाया जाता है। उसे ही हम बुशिंग कहते हैं। यह bushing इसलिए लगाया जाता है ताकि हम जो ट्रांसफार्मर के wire को जोड़ते है तो वह wire directly transformer के बॉडी से टच न हो जाए।

अतः यह बुशिंग wire को ट्रांसफार्मर के बॉडी से टच होने से बचाता है। ट्रांसफार्मर में bushing दो प्रकार के होते हैं। प्राइमरी टर्मिनल में लगा bushing प्राइमरी bushing और सेकेंड्री टर्मिनल में लगा bushing सेकेंड्री बुशिंग कहलाता हैं। यह bushing सिरेमिक मैटेरियल का बना होता है।

Bukholz relay:

Bukholz relay एक एक प्रकार का प्रोटेक्टिंग डिवाइस है जो कि ट्रांसफार्मर में कंजरवेटर टैंक और मेन आयल टैंक के बीच में जो पाइप लगा होता है उसी में यह रिले भी लगा होता है। यह रिले ट्रांसफार्मर आयल के ज्यादा हिट होने पर सबसे पहले तो अलार्म देता है उसके बाद यदि अलार्म के बाद भी ज्यादा हिट होता है तो यह सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेजता है और सर्किट ब्रेकर ट्रांसफार्मर को मेन सप्लाई से डिस्कनेक्ट कर देती है।

Buchholz relay in Hindi | बुकोल्ज रिले का उपयोग

रेडिएटर:

ट्रांसफार्मर में रेडिएटर का काम ट्रांसफार्मर आयल को ठंडा करने का है। जब भी आप कभी ट्रांसफार्मर देखते हैं तो ट्रांसफार्मर के बॉडी से बाहर की तरफ निकला हुआ जालीनुमा आकार का स्ट्रूचर होता है। यह स्ट्रक्चर ट्रांसफार्मर की मेन टैंक से एक पाइप के द्वारा जुड़ा होता है।

ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग

जब ट्रांसफार्मर का आयल हीट होता है तो हिट होने की स्थिति में ट्रांसफार्मर का आयल ऊपर की ओर उठता है ऊपर के ऊठने से वह आयल इस ट्रांसफार्मर के रेडिएटर में जाता है जब रेडिएटर में यहां आयल जाता है तो रेडिएटर का काम इसकी आयल की हिट को निकालना है तो जब रेडिएटर से तेल गुजरता है तो तेल ठंडा हो जाता है और फिर वह नीचे की तरफ चला जाता है। यही प्रक्रिया ट्रांसफार्मर के आयल को ठंडा करने के लिए लगातार चलती रहती है।

कूलिंग फैन :

कभी-कभी रेडिएटर में जो तेल रहता है ज्यादा हिट होने के कारण जल्दी से ठंडा नहीं हो पाता तो उसी स्थिति में हम रेडिएटर के प्लेटो को ठंडा करने के लिए कूलिंग फैन लगाते हैं। यह कूलिंग फैन रेडिएटर के प्लेट जो गर्म हो जाते हैं उसको जल्दी से ठंडा करने का काम करता है। ताकि इस प्लेट के अंदर जो आयल भरा है वह भी जल्दी से ठंडा हो जाए।

Vent pipe:

वेंट पाइप एक प्रकार का पाइप नुमा ट्रांसफार्मर के मेन टैंक के ऊपर से निकला रहता है। जिसके एंड साइड पर एक सेफ्टी वाल्व लगा होता है। ट्रांसफार्मर में वेंट पाइप का काम तब लगता है जब ट्रांसफार्मर में ज्यादा हीट उत्पन्न होने के कारण ट्रांसफार्मर आयल वाष्प में बदलता है। और वाष्प के कारण ट्रांसफार्मर टैंक में प्रेशर की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। तो इस स्थिति में ट्रांसफार्मर में ऊपर की तरफ लगा हुआ वेंट पाइप उस बड़े हुए गैस की मात्रा को वाल्व के द्वारा बाहर निकाल देता है। और इस प्रकार से ट्रांसफार्मर के अंदर ट्रांसफार्मर आयल और वाष्प का प्रेशर कम हो जाता है।

Breather:

Breather एक ऐसा यंत्र है जो ट्रांसफार्मर में सांस लेने का या ट्रांसफार्मर के टैंक आयल के अंदर हवा जाने का एक रास्ता होता है। मतलब कि एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि breather ट्रांसफार्मर का नाक होता है। इस breather में एक सिलिका जेल का पदार्थ भरा होता है। जोकि ट्रांसफार्मर के अंदर जाने वाले हवा में से नमी को अवशोषित करके सुख हवा को अंदर जाने देता है। यदि हम नमी युक्त हवा ट्रांसफार्मर के अंदर जाने देंगे तो यह नमी युक्त हवा ट्रांसफार्मर के आयल में मिलकर ट्रांसफार्मर की इंसुलेशन प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाता है। जिससे कि ट्रांसफार्मर में फाल्ट आने के चांसेस बढ़ जाते हैं क्योंकि आयल की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रैंथ घट जाती है।

ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग

Breather में भरे जाने वाले सिलिका जेल का कलर शुरुआत में नीले कलर का होता है। लेकिन समय के साथ जब breather ज्यादा नमी इकट्ठा कर लेता है यानी कि जब सिलिका जेल के अंदर नमी की मात्रा ज्यादा बढ़ती जाती है तो सिलिका जेल का कलर बदलकर पिंक कलर का हो जाता है तो यह एक इंडिकेशन होता है कि हम उस सिलिका जेल को निकाल कर या तो उसे बदल दे नहीं तो एक प्रॉपर प्रोसेस होता है जिस प्रोसेस के अंतर्गत उस सिलिका जेल से हम नमी को दूर कर देते हैं उसके बाद फिर से उसी सिलिका जेल को भर देते हैं।

नोट: आजकल नए प्रकार की सील का जेल भी आने लगे हैं  कलर लेस होता है।

कंट्रोल पैनल:

ट्रांसफार्मर में मेन टर्मिनल के अलावा ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए बहुत सारे प्रकार के प्रोटेक्टिव डिवाइस लगाते हैं। जिसका कनेक्शन हम ट्रांसफार्मर में लगे कंट्रोल पैनल से करते हैं। इस ट्रांसफार्मर में एक छोटा सा पैनल लगा होता है जिसे ही हम कंट्रोल पैनल करते हैं इसी कंट्रोल पैनल में सर्किट ब्रेकर, बुखोल्ज रिले, बहुत सारे प्रकार के इंडिकेटर जैसे आयल टेंपरेचर इंडिकेटर, ऑयल लेवल इंडिकेटर, अलार्म इंडिकेटर आदि प्रकार के कंट्रोल सिस्टम का कनेक्शन होता है।

ग्राउंड टर्मिनल:

जैसा कि हमें पता है कि सभी इलेक्ट्रिकल उपकरणों को सेफ्टी के उद्देश्य से ग्राउंड टर्मिनल करते हैं। उसी प्रकार हम ट्रांसफार्मर को भी ग्राउंड टर्मिनल से जोड़ने के लिए हम इस ट्रांसफार्मर में एक ट्रांसफार्मर के बॉडी से टर्मिनल निकालते हैं जिसे हम ग्राउंड टर्मिनल करते हैं और इसी टर्मिनल के थ्रू हम ग्राउंडिंग कनेक्शन से ट्रांसफार्मर को जोड़ देते हैं।

Drain valve:

ट्रांसफॉर्मर की बॉडी की नीचे के साइड एक पाइप नुमा वाल्व लगा होता है इस वाल्व से हम जब भी कभी हमें ट्रांसफॉर्मर ऑयल निकालने की जरूरत पड़ती है, तो इसी वाल्व से हम आसानी से निकाल देते हैं। इसे हम ड्रेन वाल्व कहते हैं।

जब भी हमें ट्रांसफार्मर आयल की टेस्टिंग करनी होती है या ट्रांसफार्मर आयल में जो नमी या कचरा युक्त हो जाता है उसे उसकी सफाई करनी होती है तो इसी ड्रेन वाल्व से ऑयल को निकाला जाता है।

ऑयल लेवल इंडिकेटर:

ऑयल लेवल इंडिक्टर एक प्रकार का इंडिकेटर होता है जो ट्रांसफार्मर में ऑयल की मात्रा को बताता है। जिससे हम oil घटने पर पता चल जाता हैं।

ऑयल टेंपरेचर इंडिकेटर:

ट्रांसफॉर्मर में ऑयल का टेंपरेचर मापने के लिए भी ट्रांसफार्मर में एक इंडिकेटर लगा होता है। जिसे हम ऑयल टेंपरेचर इंडिकेटर कहते हैं।

Conclusion:

इस प्रकार आपने देखा की ट्रांसफार्मर में कुछ महत्वपूर्ण पार्ट के बारे में। अगर आपको ट्रांसफार्मर में के इस पोस्ट से संबंधित कुछ सवाल है आप नीचे कमेंट में पूछ सकते हैं।

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